(ii) जो भारत की सीमाओं पर पिकेट की संक्रियाएं कर रहा है अथवा पेट्रोल ( गश्त ) या कोई अन्य रक्षा ड्यूटी करने में लगा हुआ है , संलग्न है या उसका भाग है , ड्यूटी अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत ऐसे व्यक्ति द्वारा किसी ऐसी अवधि के दौरान की गई ड्यूटी है जो केन्द्रीय सराकर द्वारा , आदेश द्वारा , किसी ऐसे क्षेत्र के प्रति निर्देश से , जिसमें कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का कोई वर्ग , जो इस अधिनियम के अधीन है , सेवा कर रहा हो , सक्रिय ड्यूटी की अवधि घोषित की गई है ;
(ख) बटालियन " से बल की वह यूनिट अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा बटालियन के रूप में गठित की जाती है ;
(ग) सिविल अपराध" से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो दंड न्यायालय द्वारा विचारणीय है;
(घ) सिविल कारागार" से ऐसी जेल या स्थान अभिप्रेत है जिसका किसी आपराधिक कैदी के निरोध के लिए कारागार अधिनियम, 1894 (1894 का 9) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन प्रयोग किया जाता है;
(ङ) कमान आफिसर" से ऐसा कोई कमांडेन्ट या कोई आफिसर अभिप्रेत है जो उस यूनिट या बल के किसी ऐसे पृथक् प्रभाग का तत्समय समादेशन कर रहा है जिससे ऐसा व्यक्ति संबंधित है या संलग्न है और इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन कर रहा है;
(च) दंड न्यायालय" से दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन गठित भारत के किसी भाग में का मामूली दंड न्यायालय अभिप्रेत है;
(छ) उपमहानिदेशक" और अपर उपमहानिदेशक" से धारा 5 के अधीन नियुक्त बल का क्रमशः कोई उपमहानिदेशक और अपर महानिदेशक अभिप्रेत है;
(ज) महानिदेशक" और अपर महानिदेशक" से धारा 5 के अधीन नियुक्त बल का क्रमशः कोई महानिदेशक और अपर महानिदेशक अभिप्रेत है;
( झ ) शत्रु " के अंतर्गत ऐसे सभी सैन्य विद्रोही , सायुध बागी , सायुध बलवाकारी , जल दस्यु आतंकवादी और ऐसा कोई सशस्त्र व्यक्ति भी है , जिसके विरुद्ध कार्रवाई करना किसी ऐसे व्यक्ति का कर्तव्य है जो इस अधिनियम के अधीन है ;
( ञ ) अभ्यावेशित व्यक्ति " से इस अधिनियम के अधीन अभ्यावेशित कोई अवर आफिसर या अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है ;
(ट) बल" से सशस्त्र सीमा बल अभिप्रेत है;
(ठ) बल न्यायालय" से धारा 76 में निर्दिष्ट न्यायालय अभिप्रेत है;
(ड) बल अभिरक्षा" से धारा 69 के अधीन बल के किसी सदस्य की गिरफ्तारी या परिरोध अभिप्रेत है;
(ढ) महानिरीक्षक" से धारा 5 के अधीन नियुक्त बल का महानिरीक्षक अभिप्रेत है;
( ण ) जज अटर्नी जनरल ", अपर जज अटर्नी जनरल ", उप जज अटर्नी जनरल " और जज अटर्नी " से धारा 95 की उपधारा (2) के अधीन नियुक्त जज अटर्नी जनरल , अपर जज अटर्नी , उप जज अटर्नी जनरल और जज अटर्नी अभिप्रेत हैं ;
( त ) बल का सदस्य " से कोई आफिसर , कोई अधीनस्थ आफिसर , कोई अवर आफिसर या अन्य अभ्यावेशित व्यक्ति अभिप्रेत है ;
(थ) अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(द) अपराध" से इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई कार्य या लोप अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कोई सिविल अपराध भी है;
(ध) आफिसर" से बल के आफिसर के रूप में नियुक्त या वेतन पाने वाला कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, किन्तु इसके अंतर्गत कोई अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर नहीं है;
(न) विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(प) नियम" से इस अधिनियम के अधीन बनाया गया कोई नियम अभिप्रेत है;
(फ) अधीनस्थ आफिसर" से बल के सूबेदार मेजर या निरीक्षक या उपनिरीक्षक और सहायक उपनिरीक्षक के रूप में नियुक्त या वेतन पाने वाला कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
( ब ) वरिष्ठ आफिसर " से , जब वह उस व्यक्ति के संबंध में प्रयुक्त हो जो इस अधिनियम के अधीन है , अभिप्रेत है -
(i) बल का कोई सदस्य, जिसके समादेश के अधीन नियमों के अनुसार तत्समय वह व्यक्ति है;
(ii) उस व्यक्ति से उच्चतर रैंक या वर्ग का अथवा एक ही वर्ग में उच्चतर ग्रेड का कोई आफिसर और जब ऐसा व्यक्ति आफिसर नहीं है तब इसके अंतर्गत उच्चतर रैंक , वर्ग या ग्रेड का कोई अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर ;
(भ) अवर आफिसर" से बल का हैड कांस्टेबल अभिप्रेत है;
(म) यूनिट" के अंतर्गत, -
(i) बल के आफिसरों और अन्य सदस्यों का ऐसा कोई निकाय जिसके लिए कोई पृथक् प्राधिकृत स्थापन विद्यमान है ;
(ii) ऐसे व्यक्तियों का, जो इस अधिनियम के अधीन है, कोई पृथक् निकाय, जो किसी सेवा में नियोजित है और पूर्वोक्त किसी यूनिट से संलग्न नहीं है;
(iii) व्यक्तियों का ऐसा कोई अन्य पृथक् निकाय, जो ऐसे व्यक्तियों से जो इस अधिनियम के अधीन हैं, पूर्णतः या भागतः गठित है और केन्द्रीय सरकार द्वारा यूनिट के रूप में विनिर्दिष्ट है ।
(2) उन सभी शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु भारतीय दंड संहिता (1860 का 45), सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46) या राष्ट्रीय सुरक्षक अधिनियम, 1986 (1986 का 47) में परिभाषित हैं, वही अर्थ हैं जो उस संहिता या उन अधिनियमों में हैं ।
(3) इस अधिनियम में किसी ऐसी विधि के, जो जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त नहीं है, प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उस राज्य में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि के प्रति निर्देश हैं ।
3. व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन है-(1) बल में (चाहे प्रतिनियुक्ति पर या किसी अन्य रीति से) नियुक्त निम्नलिखित व्यक्ति, चाहे वे कहीं भी हों, इस अधिनियम के अधीन होंगे, अर्थात्ः-
(क) आफिसर और अधीनस्थ आफिसर; और
(ख) अवर आफिसर और इस अधिनियम के अधीन अभ्यावेशित अन्य व्यक्ति ।
(2) प्रत्येक व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, इस प्रकार तब तक अधीन बना रहेगा जब तक कि वह इस अधिनियम और नियमों के उपबंधों के अनुसार बल से संप्रत्यावर्तित नहीं कर दिया जाता है, सेवा से निवृत्त नहीं हो जाता है, निर्मुक्त, उन्मोचित या पदच्युत नहीं कर दिया जाता है या हटा नहीं दिया जाता है ।
अध्याय 2
बल का गठन और बल के सदस्यों की सेवा की शर्तें
4. बल का गठन -(1) संघ का एक सशस्त्र बल होगा जिसका नाम सशस्त्र सीमा बल होगा और जो भारत की सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा तथा ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे सौंपे जाएं ।
(2) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, बल का गठन ऐसी रीति से किया जाएगा जो विहित की जाए और बल के सदस्यों की भर्ती और सेवा की शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।
5. नियंत्रण, निदेशन, आदि-(1) बल का साधारण अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण केन्द्रीय सरकार में निहित होगा और वही उसका प्रयोग करेगी और उसके तथा इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, बल का समादेशन और अधीक्षण ऐसे आफिसर में निहित होगा जिसे केन्द्रीय सरकार बल के महानिदेशक के रूप में नियुक्त करे ।
(2) इस अधिनियम के अधीन महानिदेशक के कर्तव्यों के निर्वहन में उसकी सहायता करने के लिए उतने अपर महानिदेशक, महानिरीक्षक, उपमहानिरीक्षक, अपर उपमहानिरीक्षक, कमांडेंट और अन्य आफिसर होंगे, जितने केन्द्रीय सरकार नियुक्त करे ।
6. अभ्यावेशन-बल में अभ्यावेशित किए जाने वाले व्यक्ति, अभ्यावेशन का ढंग और अभ्यावेशन की प्रक्रिया वह होगी जो विहित की जाए ।
7. भारत के बाहर सेवा करने का दायित्व-बल का प्रत्येक सदस्य भारत के किसी भाग में तथा भारत के बाहर भी, सेवा करने के दायित्व के अधीन होगा ।
8. पद त्याग और पद से अलग होना- विहित प्राधिकारी की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना , बल के किसी सदस्य को , -
(क) उस अवधि के दौरान, जिसके लिए वह वचनबद्ध है, अपने पद का त्याग करने की; या
(ख) अपने पद के सभी या किन्हीं कर्तव्यों से अलग होने की, स्वतंत्रता नहीं होगी ।
9. अधिनियम के अधीन सेवा की अवधि-प्रत्येक व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा ।
10. केन्द्रीय सरकार द्वारा सेवा की समाप्ति-इस अधिनियम और नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के अधीन किसी व्यक्ति को सेवा से पदच्युत कर सकेगी या हटा सकेगी ।
11. महानिदेशक और अन्य आफिसरों द्वारा पदच्युत किया जाना, हटाया जाना या अवनत किया जाना-(1) महानिदेशक या कोई अपर महानिदेशक या महानिरीक्षक इस अधिनियम के अधीन के किसी ऐसे व्यक्ति को , जो आफिसर नहीं है , सेवा से पदच्युत कर सकेगा या हटा सकेगा या निम्नतर ग्रेड या रैंक या रैंकों में अवनत कर सकेगा ।
(2) कोई आफिसर, जो उपमहानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है या कोई विहित आफिसर अपने समादेश के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति को, जो ऐसे रैंक का आफिसर या अधीनस्थ आफिसर नहीं है जो विहित किया जाए, सेवा से पदच्युत कर सकेगा या हटा सकेगा ।
(3) उपधारा (2) में वर्णित कोई आफिसर अपने समादेश के अधीन किसी ऐसे व्यक्ित को, जो आफिसर या अधीनस्थ आफिसर नहीं है, निम्नतर ग्रेड या रैंक में अवनत कर सकेगा ।
(4) इस धारा के अधीन किसी शक्ति का प्रयोग, इस अधिनियम और नियमों के अधीन रहते हुए, किया जाएगा ।
12. सेवा की समाप्ति का प्रमाणपत्र-किसी अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर या अन्य अभ्यावेशित व्यक्ति को, जिसे सेवा से निवृत्त, उन्मोचित या निर्मुक्त कर दिया गया है या हटा दिया गया है या पदच्युत कर दिया गया है उस आफिसर द्वारा, जिसके समादेश के अधीन वह है, हिन्दी या अंग्रेजी भाषा में एक प्रमाणपत्र दिया जाएगा जिसमें निम्नलिखित उपवर्णित होंगे, अर्थात्ः-
(क) उसकी सेवा को समाप्त करने वाला प्राधिकारी;
(ख) ऐसी समाप्ति का कारण; और
(ग) बल में उसकी सेवा की पूर्ण अवधि ।
13. संगम बनाने, वाक् स्वांतत्र्य आदि के अधिकार के संबंध में निर्बन्धन-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, केन्द्रीय सरकार या विहित प्राधिकारी की लिखित पूर्व मंजूरी के बिना, -
(क) किसी व्यवसाय संघ, श्रमिक संघ या राजनीतिक संगम का अथवा व्यवसाय संघों, श्रमिक संघों या राजनीतिक संगमों के किसी वर्ग का सदस्य और उससे किसी भी रूप में सहयोजित नहीं होगा; या
( ख ) किसी सोसाइटी , संस्था , संगम या संगठन का , जिसे बल के भाग के रूप में मान्यताप्राप्त नहीं है या जो केवल सामाजिक , आमोद - प्रमोदात्मक या धार्मिक स्वरूप का नहीं है , सदस्य और उससे किसी भी रूप में सहयोजित नहीं होगा ; या
( ग ) प्रेस से न तो पत्र - व्यवहार करेगा और न कोई पुस्तक , पत्र या अन्य दस्तावेज प्रकाशित करेगा , न प्रकाशित कराएगा , किन्तु उस दशा में ऐसा कर सकेगा जब कि ऐसा पत्र - व्यवहार या प्रकाशन उसके कर्तव्यों के सद्भावपूर्वक निर्वहन के लिए हैं या केवल साहित्यिक , कलात्मक या वैज्ञानिक प्रकृति का है या विहित प्रकृति का है ।
स्पष्टीकरण-यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठता है कि इस उपधारा के खंड (ख) के अधीन कोई सोसाइटी, संस्था, संगम या संगठन केवल सामाजिक, आमोद-प्रमोदात्मक या धार्मिक स्वरूप का है या नहीं तो उस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।
(2) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, ऐसे किसी अधिवेशन में न तो भाग लेगा और न उसे संबोधित करेगा और न ऐसे किसी प्रदर्शन में भाग लेगा, जो किन्हीं राजनीतिक प्रयोजनों से या ऐसे अन्य प्रयोजनों से जो विहित किए जाएं, व्यक्तियों के किसी निकाय द्वारा, आयोजित किया गया है ।
14. आफिसरों से भिन्न व्यक्तियों की शिकायतों का प्रतितोष-(1) आफिसर से भिन्न कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन है और जो यह समझता है कि किसी वरिष्ठ या अन्य आफिसर द्वारा उसके साथ अन्याय किया गया है, उस आफिसर से, जिसके समादेश के अधीन वह सेवा कर रहा है, परिवाद कर सकेगा ।
(2) जब वह आफिसर , जिसके विरुद्ध परिवाद किया गया है , ऐसा आफिसर है जिससे कोई परिवाद उपधारा (1) के अधीन किया जाना चाहिए तब व्यथित व्यक्ति उस आफिसर के अगले वरिष्ठ आफिसर से परिवाद कर सकेगा ।
(3) प्रत्येक आफिसर, जिसे कोई ऐसा परिवाद प्राप्त हो, परिवादी को पूरा प्रतितोष देने के लिए यथासंभव पूर्ण अन्वेषण करेगा या जब आवश्यक हो परिवाद वरिष्ठ प्राधिकारी को निर्देशित करेगा ।
(4) महानिदेशक पूर्वगामी उपधाराओं में से किसी के अधीन किए गए किसी विनिश्चय को पुनरीक्षित कर सकेगा किन्तु, उसके अधीन रहते हुए, ऐसा विनिश्चय अंतिम होगा ।
15. आफिसरों की शिकायतों का प्रतितोष-कोई आफिसर, जो यह समझता है कि उसके कमान आफिसर या किसी अन्य वरिष्ठ आफिसर द्वारा उसके साथ अन्याय किया गया है और जिसको, अपने कमान आफिसर या ऐसे अन्य वरिष्ठ आफिसर से सम्यक् आवेदन करने पर, ऐसा प्रतितोष प्राप्त नहीं होता है जिसका वह स्वयं को हकदार समझता है, वह महानिदेशक या केन्द्रीय सरकार को उचित माध्यम से परिवाद कर सकेगा ।
अध्याय 3
अपराध
16. शत्रु से संबंधित और मृत्यु से दंडनीय अपराध-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) किसी ऐसे पदस्थान, स्थान या गारद को जो उसके भारसाधन में सुपुर्द किया गया है या जिसकी रक्षा करना उसका कर्तव्य है, लज्जास्पद रूप से परित्यक्त या समर्पित करेगा; या
(ख) ऐसे किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम या सेना, नौसेना, वायुसेना से या संघ के किसी अन्य सशस्त्र बल से संबंधित किसी अन्य विधि के अधीन है, शत्रु के विरुद्ध कार्य करने से प्रवरित रहने के लिए या ऐसे व्यक्ति को शत्रु के विरुद्ध कार्य करने से निरुत्साहित करने के लिए विवश या उत्प्रेरित करने के लिए किन्हीं साधनों का साशय उपयोग करेगा; या
(ग) शत्रु की उपस्थिति में अपने आयुधों, गोलाबारूद, औजारों या उपस्करों को लज्जास्पद रूप से संत्यक्त करेगा या ऐसी रीति से कदाचार करेगा जिससे कायरता दर्शित हो; या
(घ) शत्रु, आतंकवादी या किसी ऐसे व्यक्ति से, जो संघ के विरुद्ध उद्यतायुध है, विश्वासघातपूर्वक वार्ताचार करेगा या उसे आसूचना देगा; या
(ङ) धन, आयुध, गोलाबारूद, सामान या प्रदाय से या किसी भी अन्य रीति से शत्रु या आतंकवादी की प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः सहायता करेगा; या
( च ) शत्रु या आतंकवादी के विरुद्ध सक्रिय संक्रिया के दौरान संघर्ष के समय , कैंप में , क्वार्टरों में मिथ्या एलार्म साशय होने देगा अथवा ऐसी रिपोर्ट जो एलार्म या नैराश्य पैदा करने के लिए प्रकल्पित हो , फैलाएगा या फैलवाएगा ; या
(छ) संघर्ष के समय नियमित रूप से अवमुक्त हुए बिना या छुट्टी के बिना अपने कमान आफिसर या अन्य वरिष्ठ आफिसर को या अपने पदस्थान, गारद, पिकेट, पेट्रोल या दल को छोड़ेगा; या
( ज ) शत्रु द्वारा पकड़े जाने पर या युद्ध कैदी बनाए जाने पर स्वेच्छा से शत्रु पक्ष में सेवा करेगा या शत्रु की सहायता करेगा ; या
(झ) ऐसे शत्रु को जो कैदी नहीं है, जानते हुए संश्रय देगा या उसका संरक्षण करेगा; या
( ञ ) शत्रु के विरुद्ध सक्रिय संक्रिया के समय या एलार्म के समय संतरी होते हुए अपने पदस्थान पर सो जाएगा या नशे में होगा ; या
( ट ) जानते हुए कोई ऐसा कार्य करेगा जो बल की या भारत के सैनिक , नौसैनिक या वायु सैनिक बलों की या उनसे सहयोग करने वाले किन्हीं बलों की या ऐसे बलों के किसी भाग की सफलता को संकट में डालने के लिए प्रकल्पित हो ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर मृत्यु दंड या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के लिए दायित्व के अधीन होगा ।
17. शत्रु से संबंधित अपराध, जो मृत्यु से दंडनीय नहीं है-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) सम्यक् पूर्वावधानी के अभाव से या आदेशों की अवज्ञा या कर्तव्य की जानबूझकर उपेक्षा के कारण कैदी बना लिया जाएगा या शत्रु द्वारा पकड़ लिया जाएगा या कैदी बना लिए जाने पर या इस प्रकार पकड़े जाने पर उस समय, जब वह अपनी सेवा पर वापस आ जाने में समर्थ है, ऐसा करने में असफल रहेगा; या
(ख) सम्यक् प्राधिकार के बिना शत्रु के साथ या ऐसे व्यक्ति के साथ, जो शत्रु से मिला हुआ है, वार्ताचार करेगा या उसको आसूचना देगा या ऐसे किसी वार्ताचार या आसूचना का ज्ञान प्राप्त होने पर उसे तुरन्त अपने कमान आफिसर या अन्य वरिष्ठ आफिसर से प्रकट करने का जानबूझकर लोप करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
18. अन्य समयों की अपेक्षा सक्रिय ड्यूटी पर होते हुए अधिक कठोरता से दंडनीय अपराध-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) किसी संरक्षण गारद का अतिक्रमण करेगा या किसी संतरी का अतिक्रमण करेगा या उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा; या
(ख) लूट-पाट की तलाश में किसी गृह या अन्य स्थान में अनधिकृत प्रवेश करेगा; या
(ग) संतरी होते हुए अपने पदस्थान पर सो जाएगा या नशे में होगा; या
(घ) अपने वरिष्ठ आफिसर के आदेशों के बिना अपनी गारद, पिकेट, पेट्रोल या पदस्थान को छोड़ेगा; या
(ङ) कैंप में या क्वार्टरों में मिथ्या एलार्म साशय या उपेक्षा से होने देगा या ऐसी रिपोर्ट, जो अनावश्यक एलार्म या नैराश्य पैदा करने के लिए प्रकल्पित हो, फलाएगा या फैलवाएगा; या
( च ) पैरोल , संकेत - शब्द या प्रतिसंकेत किसी ऐसे व्यक्ति को , जो उसे जानने का हकदार नहीं है , बताएगा या जो पैरोल , संकेत - शब्द या प्रतिसंकेत उसे बताया गया है उससे भिन्न पैरोल , संकेत - शब्द या प्रतिसंकेत जानते हुए देगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, -
(i) उस दशा में जिसमें वह ऐसा कोई अपराध सक्रिय ड्यूटी पर होते हुए करेगा , कारावास , जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी , या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ; और
(ii) उस दशा में जिसमें वह ऐसा कोई अपराध सक्रिय ड्यूटी पर न होते हुए करेगा, कारावास, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
19. विद्रोह- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा , अर्थात्ः -
( क ) बल में या भारत के सैनिक , नौसैनिक या वायु सैनिक बलों में या उनसे सहायोग करने वाले किन्हीं बलों में विद्रोह आरभ करेगा , उद्दीप्त करेगा , कारित करेगा या कारित करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ षड्यंत्र करेगा ; या
(ख) ऐसे किसी विद्रोह में सम्मिलित होगा; या
(ग) ऐसे किसी विद्रोह में उपस्थित होते हुए, उसे दबाने के लिए अपने अधिकतम प्रयास नहीं करेगा; या
(घ) यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा कोई विद्रोह या ऐसा विद्रोह करने का आशय या ऐसा कोई षड्यंत्र अस्तित्व में है, उसकी जानकारी अपने कमान आफिसर या अन्य वरिष्ठ आफिसर को अविलंब नहीं देगा; या
( ङ ) बल के या भारत के सैनिक , नौसैनिक या वायु सैनिक के या उनसे सहयोग करने वाले किन्हीं बलों के किसी व्यक्ति को उसके कर्तव्य से या संघ के प्रति उसकी राजनिष्ठा से विचलित करने का प्रयास करेगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर मृत्यु दंड या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
20. अभित्यजन और अभित्यजन में सहायता करना-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, सेवा का अभित्यजन करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर-
(क) उस दशा में जिसमें वह ऐसा अपराध सक्रिय ड्यूटी पर रहते हुए करेगा या सक्रिय ड्यूटी पर जाने के आदेश के अधीन होते हुए करेगा, मृत्यु दंड या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा; और
(ख) उस दशा में जिसमें वह ऐसा अपराध किन्हीं अन्य परिस्थितियों में करेगा, कारावास जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
(2) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, जानते हुए ऐसे किसी अभित्यजक को संश्रय देगा, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
(3) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, ऐसे किसी व्यक्ति के, जो इस अधिनियम के अधीन है, किसी अभित्यजन का या अभित्यजन के प्रयत्न का संज्ञान रखते हुए तत्काल अपने या किसी अन्य वरिष्ठ आफिसर को सूचना नहीं देगा या ऐसे व्यक्ति को पकड़वाने के लिए अपनी शक्ति में की कोई कार्रवाई नहीं करेगा, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
(4) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए कोई व्यक्ति अभित्यजन करेगा-
(क) यदि वह अपने यूनिट या कर्तव्य स्थान से किसी भी समय ऐसे यूनिट या स्थान को वापस रिपोर्ट न करने के आशय से अनुपस्थित रहेगा या जो किसी भी समय और किन्हीं परिस्थितियों में जब वह अपने यूनिट या कर्तव्य स्थान से अनुपस्थित हो, ऐसा कोई कार्य करेगा जो यह दर्शित करता है कि उसका ऐसे यूनिट या कर्तव्य स्थान को वापस रिपोर्ट न करने का आशय है;
(ख) यदि वह किसी सक्रिय ड्यूटी से बचने के आशय से छुट्टी के बिना अनुपस्थित रहता है ।
21. छुट्टी के बिना अनुपस्थिति-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) छुट्टी बिना अपने को अनुपस्थित रखेगा; या
(ख) अपने को अनुदत्त छुट्टी के उपरांत पर्याप्त हेतुक के बिना अनुपस्थित रहेगा; या
(ग) अनुपस्थिति छुट्टी पर होते हुए और समुचित प्राधिकारी से यह जानकारी मिलने पर कि किसी बटालियन या उसके भाग को या बल की किसी अन्य यूनिट को, जिसका वह अंग है, सक्रिय ड्यूटी पर जाने का आदेश दे दिया गया है, काम पर अविलंब वापस आने में पर्याप्त हेतुक के बिना असफल रहेगा; या
(घ) परेड में नियत समय पर या अभ्यास या ड्यूटी के लिए नियुक्ति स्थान पर हाजिर होने में पर्याप्त हेतुक के बिना असफल रहेगा; या
(ङ) उस दौरान जब वह परेड में या प्रगमन पथ पर है, पर्याप्त हेतुक के बिना या अपने वरिष्ठ आफिसर से इजाजत लिए बिना परेड या प्रगमन पथ छोड़ेगा; या
( च ) जब वह कैंप में या अन्यत्र है तब किसी साधारण , स्थानीय या अन्य आदेश द्वारा नियत किन्हीं परिसीमाओं से परे या किसी प्रतिषिद्ध स्थान में , पास के बिना या अपने वरिष्ठ आफिसर की लिखित इजाजत के बिना पाया जाएगा ; या
(छ) जब उसे किसी स्कूल या प्रशिक्षण संस्था में हाजिर होने के लिए सम्यक् रूप से आदेश दिया गया है तब अपने वरिष्ठ आफिसर की इजाजत के बिना या सम्यक् हेतुक के बिना अपने को उससे अनुपस्थित रखेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
22. वरिष्ठ आफिसर पर आघात करना या उसे धमकी देना-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) अपने वरिष्ठ आफिसर पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या हमला करेगा; या
(ख) ऐसे आफिसर के प्रति धमकी भरी भाषा का प्रयोग करेगा; या
(ग) ऐसे आफिसर के प्रति अनधीनता द्योतक भाषा का प्रयोग करेगा, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर-
(i) उस दशा में जिसमें ऐसा आफिसर उस समय अपने पद का निष्पादन कर रहा है या उस दशा में जिसमें अपराध सक्रिय ड्यूटी पर किया जाता है, कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा; और
(ii) अन्य दशाओं में, कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा:
परन्तु खंड (ग) में विनिर्दिष्ट अपराध की दशा में ऐसा कारावास पांच वर्ष से अधिक का नहीं होगा ।
23. वरिष्ठ आफिसर के प्रति अवज्ञा-(1) इस अधिनियम के अधीन का कोई व्यक्ति, जो अपने वरिष्ठ आफिसर द्वारा अपने पद के निष्पादन में स्वयं दिए गए किसी विधिपूर्ण समादेश को, चाहे वह मौखिक रूप से या लिखकर या संकेत द्वारा या अन्यथा दिया गया हो, ऐसी रीति से अवज्ञा करेगा, जिससे प्राधिकार का जानबूझकर किया गया तिरस्कार दर्शित होता है, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
(2) इस अधिनियम के अधीन कोई व्यक्ति, जो अपने वरिष्ठ आफिसर द्वारा दिए गए किसी विधिपूर्ण समादेश की अवज्ञा करेगा, वह बल न्यायालय द्वारा, दोषसिद्धि पर-
(क) उस दशा में, जिसमें वह ऐसा अपराध सक्रिय ड्यूटी पर होते हुए करेगा, कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा; और
(ख) उस दशा में, जिसमें वह ऐसा अपराध सक्रिय ड्यूटी पर नहीं होते हुए करेगा, कारावास, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
24. अनधीनता और बाधा-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) किसी झगड़े, दंगे या उपद्रव में संपृक्त होते हुए, किसी ऐसे आफिसर की, भले ही वह निम्नतर रैंक का हो, जो उसकी गिरफ्तारी का आदेश देता है, आज्ञा का पालन करने से इंकार करेगा अथवा ऐसे किसी आफिसर पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या हमला करेगा; या
( ख ) किसी ऐसे व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या हमला करेगा , जिसकी अभिरक्षा में उसे विधिपूर्वक रखा गया है , चाहे वह व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन हो या नहीं और चाहे वह उसका वरिष्ठ आफिसर हो या नहीं ; या
(ग) ऐसे अनुरक्षक का प्रतिरोध करेगा, जिसका कर्तव्य उसे पकड़ना या अपने भारसाधक में लेना है; या
(घ) बैरकों, कैंप या क्वार्टरों में अनधिकृत रूप से निकलेगा; या
(ङ) किसी साधारण, स्थानीय या अन्य आदेश के पालन की उपेक्षा करेगा; या
( च ) धारा 75 में निर्दिष्ट बल पुलिस के या उसकी ओर से विधिपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के समक्ष अड़चन डालेगा अथवा बल पुलिस या उसकी ओर से विधिपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के कर्तव्य के निष्पादन में उसकी सहायता की अपेक्षा किए जाने पर उससे इंकार करेगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास , जिसकी अवधि उन अपराधों की दशा में , जो खंड ( घ ) और खंड ( ङ ) में विनिर्दिष्ट है , दो वर्ष तक की , और उन अपराधों की दशा में , जो अन्य खंडों में विनिर्दिष्ट हैं , दस वर्ष तक की हो सकेगी या दोनों में से प्रत्येक दशा में , ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
25. अभ्यावेशन के समय मिथ्या जानकारी देना- यदि किसी व्यक्ति के बारे में , जो इस अधिनियम के अधीन हो गया है , यह पता चलेगा कि अपने अभ्यावेशन के समय अभ्यावेशन के लिए विहित प्ररूप में दिए गए किसी ऐसे प्रश्न की , जो अभ्यावेशन करने वाले उस आफिसर ने उससे पूछा था , जिसके समक्ष वह अभ्यावेशन के प्रयोजन के लिए हाजिर हुआ था , जानबूझकर मिथ्या जानकारी दी है , वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास , जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी , या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
26. अशोभनीय आचरण-कोई आफिसर या अधीनस्थ आफिसर, जो ऐसी रीति से व्यवहार करेगा जो उसके पद और उससे प्रत्याशित शील की दृष्टि से अशोभनीय है, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, पदच्युत किए जाने का दायी होगा या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
27. कलंकास्पद आचरण के कुछ प्रकार-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) क्रूर, अशिष्ट या अप्राकृतिक प्रकार के किसी कलंकास्पद आचरण का दोषी होगा; या
(ख) कर्तव्य से बचने के लिए रोगी बन जाएगा या अपने में रोग या अंगशैथिल्य का ढोंग करेगा या अपने में उसे उत्पन्न करेगा या निरोग होने में साशय विलंब करेगा या अपने रोग या अंगशैथिल्य को गुरुतर बनाएगा; या
(ग) अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को सेवा के अयोग्य बनाने के आशय से अपने आपको या उस व्यक्ति को स्वेच्छा से उपहति कारित करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास का, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसे लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित हैं, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
28. अधीनस्थ के साथ बुरा बर्ताव करना- कोई आफिसर , अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर , जो किसी ऐसे व्यक्ति पर , जो इस अधिनियम के अधीन है , और जो रैंक या पद में उसके अधीनस्थ है , आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या उसके साथ अन्यथा बुरा बर्ताव करेगा , बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास , जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी , या ऐसा लघुतर दंड जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
29. मत्तता-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, मत्तता की हालत में पाया जाएगा, चाहे वह ड्यूटी पर हो या नहीं, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए कोई व्यक्ति मत्तता की हालत में समझा जाएगा, यदि वह एल्कोहल या किसी औषधि के अकेले या किसी अन्य पदार्थ के साथ प्रभाव के कारण अपनी ड्यूटी या कोई ऐसी ड्यूटी सौंपे जाने के, जिसका पालन करने के लिए उससे कहा जाए, अयोग्य है या विच्छृंखल रीति से या ऐसी रीति से व्यवहार करता है, जिससे बल के अविश्वसनीय होने की संभावना है ।
30. अभिरक्षा में से किसी व्यक्ति को निकल भागने देना-कोई व्यक्ित, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) उस दौरान, जब उसके समादेश में कोई गारद, पिकेट, पेट्रोल, टुकड़ी या चौकी है, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उसके भारसाधन में सुपुर्द किया गया है, उचित प्राधिकार के बिना, चाहे जानबूझकर या युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना, निर्मुक्त करेगा या किसी कैदी को या ऐसे सुपुर्द किए गए व्यक्ति को लेने से इंकार करेगा; या
(ख) ऐसे व्यक्ति को, जो उसके भारसाधन में सुपुर्द किया गया है या जिसे रखना या जिस पर पहरा रखना उसका कर्तव्य है, जानबूझकर या युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना निकल भागने देगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के अधीन होगा और उस दशा में जब उसने ऐसा कार्य जानबूझकर नहीं किया है; कारावास, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या एसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
31. गिरफ्तारी या परिरोध के संबंध में अनियमितता-कोई व्यक्ति जो, इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) किसी गिरफ्तारी या परिरुद्ध व्यक्ति को विचारण के लिए लाए बिना अनावश्यक रूप से निरुद्ध रखेगा या उसका मामला अन्वेषण के लिए उचित प्राधिकारी के समक्ष लाने में असफल रहेगा; या
( ख ) किसी व्यक्ति को बल अभिरक्षा के लिए सुपुर्द करके , ऐसी सुपुर्दगी के समय या यथासाध्य शीघ्र और किसी भी दशा में तत्पश्चात् अड़तालीस घंटे के भीतर उस आफिसर या अन्य व्यक्ति को , जिसकी अभिरक्षा में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सुपुर्द किया गया है , उस अपराध का , जिसका इस प्रकार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति पर आरोप है , लिखित और स्वहस्तारक्षरित वृत्तांत परिदत्त करने में युक्तियुक्त हेतुक के बिना असफल रहेगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास का, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसे लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित हैं, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
32. अभिरक्षा से निकल भागना- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , विधिपूर्ण अभिरक्षा में होते हुए निकल भागेगा या निकल भागने का प्रयत्न करेगा , वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास का , जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी , या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
33. संपत्ति संबंधी अपराध- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा , अर्थात्ः -
(क) सरकार की या किसी बल मेस, बैंड या संस्था की या ऐसे किसी व्यक्ति की, जो इस अधिनियम के अधीन है, किसी संपत्ति की चोरी करेगा; या
(ख) किसी ऐसी संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग करेगा या अपने उपयोग के लिए संपरिवर्तन करेगा; या
(ग) ऐसी किसी संपत्ति की बाबत आपराधिक न्यासभंग करेगा; या
( घ ) ऐसी किसी संपत्ति को , जिसकी बाबत खंड ( क ), खंड ( ख ) और खंड ( ग ) के अधीन अपराधों में से कोई अपराध किया गया है , यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा अपराध किया गया है , बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखेगा ; या
(ङ) सरकार की किसी संपत्ति को, जो उसे सौंपी गई है, जानबूझकर नष्ट करेगा या उसको क्षति पहुंचाएगा; या
( च ) कपट - वंचन करने के या किसी व्यक्ति को सदोष अभिलाभ पहुंचाने या किसी अन्य व्यक्ति को सदोष हानि पहुंचाने के आशय से कोई अन्य बात करेगा , तो वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास का , जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी , या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
34. उद्दापन और आहरण-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) उद्दापन करेगा; या
(ख) उचित प्राधिकार के बिना किसी व्यक्ति से धन, रसद या सेवा का आहरण करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास का, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
35. उपस्कर गायब कर देना-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
( क ) किन्हीं आयुधों , गोलाबारूद , उपस्कर , उपकरणों , औजारों , कपड़ों या किसी अन्य वस्तु को , जो सरकार की संपत्ति होते हुए उसे अपने उपयोग के लिए दी गई है या उसे सौंपी गई है , गायब कर देगा या गायब कर देने से संपृक्त होगा ; या
(ख) खंड (क) में वर्णित किसी वस्तु को उपेक्षा से गंवा देगा; या
(ग) अपने को अनुदत्त किसी पदक या अलंकरण को बेचेगा, गिरवी रखेगा, नष्ट करेगा या विरूपित करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास जिसकी अवधि खंड (क) में विनिर्दिष्ट अपराधों की दशा में, दस वर्ष तक की हो सकेगी और अन्य खण्डों में विनिर्दिष्ट अपराधों की दशा में, पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या दोनों में से प्रत्येक दशा में ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
36. संपत्ति आदि को क्षति-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) धारा 35 के खंड (क) में वर्णित कोई संपत्ति या किसी बल मेस, बैंड या संस्था की या किसी ऐसे व्यक्ति की, जो इस अधिनियम के अधीन है, कोई संपत्ति नष्ट करेगा या उसको क्षति पहुंचाएगा; या
( ख ) कोई ऐसा कार्य करेगा , जिसके कारण अग्िन से सरकार की किसी संपत्ति को नुकसान होता है या वह नष्ट होती है ; या
( ग ) उसको सौंपे गए किसी जीवजंतु को मार देगा , क्षति पहुंचाएगा , गायब कर देगा या उससे बुरा बर्ताव करेगा या उसे गंवा देगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, उस दशा में, जिसमें उसने ऐसा कार्य जानबूझकर किया है, कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा, और उस दशा में, जिसमें उसने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य किया है, कारावास, जिसकी अवधि, पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
37. मिथ्या अभियोग लगाना- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा , अर्थात्ः -
(क) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध, जो इस अधिनियम के अधीन है, कोई मिथ्या अभियोग, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाएगा कि ऐसा अभियोग मिथ्या है; या
(ख) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध, जो इस अधिनियम के अधीन है, कोई परिवाद करने में कोई ऐसा कथन, जिससे ऐसे व्यक्ति के शील पर प्रभाव पड़ता है, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि ऐसा कथन मिथ्या है या किन्हीं तात्त्विक तथ्यों को जानते हुए और जानबूझकर दबाएगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
38. शासकीय दस्तावेजों का मिथ्याकरण तथा मिथ्या घोषणाएं-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) उसके द्वारा तैयार की गई या हस्ताक्षरित किसी ऐसी रिपोर्ट, विवरणी, सूची, प्रमाणपत्र, पुस्तक या अन्य दस्तावेज में या उसकी विषय वस्तु में, जिसकी यथार्थता अभिनिश्चित करना उसका कर्तव्य है, कोई मिथ्या या कपटपूर्ण कथन जानते हुए करेगा या करने में संसर्गी होगा; या
(ख) कपट-वंचन करने के आशय से, खंड (क) में उल्लिखित वर्णन की किसी दस्तावेज में, कोई लोप जानते हुए करेगा या करने में संसर्गी होगा; या
(ग) जानते हुए और किसी व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के आशय से या जानते हुए और कपट-वंचन करने के आशय से किसी ऐसी दस्तावेज को, जिसे परिरक्षित रखना या प्रस्तुत करना उसका कर्तव्य है, दबा लेगा, विरूपित करेगा, परिवर्तित करेगा या उसे गायब कर देगा; या
(घ) जहां किसी बात की बाबत घोषणा करना उसका पदीय कर्तव्य है, वहां जानते हुए मिथ्या घोषणा करेगा; या
(ङ) ऐसा कथन करके, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है अथवा किसी पुस्तक या अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्टि करके या उसमें की मिथ्या प्रविष्टि का उपयोग करके, अथवा मथ्या कथन अंतर्विष्ट करने वाली कोई दस्तावेज बनाकर अथवा कोई सही प्रविष्टि करने का या सही कथन अन्तर्विष्ट करने वाली दस्तावेज बनाने का लोप करके, अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई पेंशन, भत्ता या अन्य फायदा या विशेषाधिकार अभिप्राप्त करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
39. रिक्त स्थान छोड़कर हस्ताक्षर करना और रिपोर्ट देने में असफल रहना-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) वेतन, आयुध, गोलाबारूद, उपस्कर, कपड़े, प्रदाय या सामान से या सरकार की किसी संपत्ति से संबद्ध किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते समय किसी तात्त्विक भाग को, जिसके लिए उसका हस्ताक्षर प्रमाणक है, कपटपूर्वक रिक्त छोड़ देगा; या
(ख) ऐसी रिपोर्ट या विवरणी देने या भेजने से, जिसको देना या भेजना उसका कर्तव्य है, इंकार करेगा या ऐसा करने का लोप आपराधिक उपेक्षा से करेगा,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
40. बल न्यायालय के संबंध में अपराध-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा, अर्थात्ः-
(क) किसी बल न्यायालय के समक्ष साक्षी के रूप में हाजिर होने के लिए सम्यक् रूप से समन या आदिष्ट किए जाने पर हाजिर होने में जानबूझकर या युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना व्यतिक्रम करेगा; या
(ख) ऐसी कोई शपथ लेने से या प्रतिज्ञान करने से इंकार करेगा, जिसके लिए जाने या किए जाने की अपेक्षा बल न्यायालय द्वारा वैध रूप से की गई है; या
(ग) अपनी शक्ति या नियंत्रण में की ऐसी कोई दस्तावेज पेश या पदिदत्त करने से इंकार करेगा जिसके पेश या परिदत्त किए जाने की अपेक्षा बल न्यायालय द्वारा वैध रूप से की गई है; या
( घ ) जब वह साक्षी है तब किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा जिसका उत्तर देने के लिए वह विधि द्वारा आबद्ध है ; या
(ङ) अपमानजनक भाषा या धमकी भरी भाषा का प्रयोग करके, या बल न्यायालय की कार्यवाहियों में कोई विघ्न या विक्षोभ कारित करके न्यायालय के अवमान का दोषी है,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
41. मिथ्या साक्ष्य- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , किसी बल न्यायालय या अन्य न्यायालय के समक्ष , जो शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए इस अधिनियम के अधीन सक्षम है , सम्यक् रूप से शपथ लेकर या प्रतिज्ञान करके कोई ऐसा कथन करेगा जो मिथ्या है , और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है , वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास , जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड , जो इस अधिनियम में वर्णित है , भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
42. वेतन का विधिविरुद्धतया रोक जाना-कोई आफिसर, अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर जो ऐसे व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अध्यधीन है वेतन प्राप्त करने के पश्चात् उसके शोध्य होने पर उसे विधिविरुद्धतया रोके रखेगा या देने से इंकार करेगा, वह, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
43. सुव्यवस्था और अनुशासन का अतिक्रमण-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, बल की सुव्यवस्था और अनुशासन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले ऐसे कार्य या लोप का, जो इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट नहीं है, दोषी होगा, तो वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
44. प्रकीर्ण अपराध- कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , निम्नलिखित अपराधों में से कोई अपराध करेगा , अर्थात्ः -
( क ) किसी चौकी पर या प्रगमन पर समादेशन करते हुए और यह परिवाद प्राप्त होने पर कि उसके समादेश के अधीन किसी व्यक्ति ने किसी व्यक्ति को पीटा है या उसके साथ अन्यथा बुरा बर्ताव किया है या उसे सताया है , या किसी मेले या बाजार में विघ्न डाला है या कोई बलवा या अतिचार किया है , क्षतिग्रस्त व्यक्ति की सम्यक् हानिपूर्ति करने में या मामले की रिपोर्ट उचित प्राधिकारी को करने में असफल रहेगा ; या
( ख ) किसी उपासना स्थल को अपवित्र करके या अन्यथा किसी व्यक्ति के धर्म का साशय अपमान करेगा या उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा ; या
( ग ) आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा और ऐसा प्रयत्न करने में उस अपराध के किए जाने की दशा में कोई कार्य करेगा ; या
(घ) अधीनस्थ आफिसर के रैंक से नीचे का होते हुए, जब वह ड्यूटी पर न हो, तब कैंप में या उसके आसपास अथवा किसी नगर या बाजार में या उसके आसपास या किसी नगर या बाजार को जाते हुए या उससे वापस आते हुए, कोई राइफल, तलवार या अन्य आक्रामक शस्त्र उचित प्राधिकार के बिना ले जाते हुए देखा जाएगा; या
(ङ) किसी व्यक्ति के अभ्यावेदन या सेवा में किसी व्यक्ति के लिए अनुपस्थिति छुट्टी, प्रोन्नति या कोई अन्य फायदा या अनुग्रह उपाप्त कराने के लिए हेतु या इनाम के रूप में कोई पारितोषण अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः प्रतिगृहीत करेगा या अभिप्राप्त करेगा या प्रतिगृहीत करने के लिए सहमत होगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा; या
( च ) उस देश में , जिसमें वह सेवा कर रहा है , किसी वासी या निवासी की संपत्ति या उसके शरीर के विरुद्ध कोई अपराध करेगा ,
वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
45. प्रयत्न-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, धारा 16 से धारा 44 में (जिनमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) विनिर्दिष्ट अपराधों में से कोई अपराध करने का प्रयत्न करेगा और ऐसा प्रयत्न करने में उस अपराध के किए जाने की दशा में कोई कार्य करेगा, उस दशा में जिसमें ऐसे प्रयत्न के दंड के लिए इस अधिनियम द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, -
(क) यदि किए जाने के लिए प्रयत्नित अपराध मृत्यु से दंडनीय है तो कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक हो सकेगी या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा; और
(ख) यदि किए जाने के लिए प्रयत्नित अपराध कारावास से दंडनीय है तो कारावास, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि की आधी तक हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
46. किए गए अपराधों का दुष्प्रेरण-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, धारा 16 से धारा 44 में (जिनमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, उस दशा में जिसमें दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया गया है और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड के लिए इस अधिनियम द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, उस अपराध के लिए उपबंधित दंड, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
47. मृत्यु से दंडनीय ऐसे अपराधों का दुष्प्रेरण जो नहीं किए गए हैं-कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन है, धारा 16, धारा 19 और धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन मृत्यु से दंडनीय अपराधों में से किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, उस दशा में जिसमें वह अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप नहीं किया गया है और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड के लिए इस अधिनियम द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, कारावास, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दण्ड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
48. कारावास से दंडनीय ऐसे अपराधों का दुष्प्रेरण जो नहीं किए गए हैं-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, धारा 16 से धारा 44 में (जिनमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) विनिर्दिष्ट और कारावास से दंडनीय अपराधों में से किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्ररेण करेगा, वह बल न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर, उस दशा में जिसमें वह अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप नहीं किया गया है और ऐसे दुष्प्रेरण के लिए दंड के लिए इस अधिनियम द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, कारावास, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि की आधी तक हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
49. सिविल अपराध- धारा 50 के उपबंधों के अधीन रहते हुए , कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है , भारत में या भारत से परे किसी स्थान पर कोई सिविल अपराध करेगा , वह इस अधिनियम के विरुद्ध अपराध का दोषी समझा जाएगा और यदि वह अपराध इस धारा के अधीन उस पर आरोपित किया जाता है तो वह बल न्यायालय द्वारा विचारण किए जाने के दायित्व के अधीन होगा और दोषसिद्धि पर निम्नलिखित रूप से दंडनीय होगा , अर्थात्ः -
(क) यदि अपराध ऐसा है जो भारत में प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मृत्यु से दंडनीय है तो वह कोई ऐसा दंड, जो उस अपराध के लिए पूर्वोक्त विधि द्वारा समनुदिष्ट किया गया है, और ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा; और
(ख) किसी अन्य दशा में, वह कोई ऐसा दंड, जो उस अपराध के लिए भारत में प्रवृत्त विधि द्वारा समनुदिष्ट किया गया है, या कारावास, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या ऐसा लघुतर दंड, जो इस अधिनियम में वर्णित है, भोगने के दायित्व के अधीन होगा ।
50. सिविल अपराध जो बल न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं हैं-कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो इस अधिनियम के अधीन नहीं हैं, हत्या का या हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का या ऐसे व्यक्ति से बलात्संग करने का अपराध करेगा, वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दोषी नहीं समझा जाएगा और बल न्यायालय द्वारा उसका विचारण तभी किया जाएगा जब वह उक्त अपराधों में से कोई अपराध, -
(क) सक्रिय ड्यूटी पर रहते समय करता है; या
(ख) भारत के बाहर किसी स्थान पर करता है; या
(ग) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी स्थान पर करता है ।
अध्याय 4
दंड
51. बल न्यायालयों द्वारा दंड-(1) ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जो इस अधिनियम के अधीन हैं, और जो बल न्यायालयों द्वारा सिद्धदोष ठहराए गए हैं, किए गए अपराधों के बारे में दंड निम्नलिखित मापमान के अनुसार दिए जा सकेंगे, अर्थात्ः-
(ख) कारावास, जो आजीवन या किसी अन्य लघुतर अवधि का हो सकेगा, किंतु इसके अंतर्गत बल की अभिरक्षा में तीन मास से अनधिक अवधि का कारावास नहीं है;
(ग) सेवा से पदच्युति या हटाया जाना;
(घ) अनिवार्य सेवानिवृत्ति;
(ङ) बल की अभिरक्षा में तीन मास से अनधिक अवधि का कारावास;
(च) अवर आफिसर की दशा में, सामान्य सैनिक श्रेणी में या निम्नतर रैंक या श्रेणी में या उनके रैंक की सूची में किसी निम्नतर स्थान पर अवनति;
(छ) किसी आफिसर या अधीनस्थ आफिसर की दशा में अगले निम्नतर रैंक में अवनति:
परन्तु किसी आफिसर को ऐसे रैंक में अवनत नहीं किया जाएगा जो उस रैंक से निम्नतर है जिसमें उसे आरंभ में नियुक्त किया गया था;
(ज) रैंक में की ज्येष्ठता का समपहरण और संपूर्ण सेवाकाल का या उसके किसी भाग का इसलिए समपहरण कि वह प्रोन्नति के प्रयोजन के लिए न गिना जाए;
(झ) सेवाकाल का इसलिए समपहरण कि वह वेतनवृद्धि या पेंशन के प्रयोजन के लिए न गिना जाए;
(ञ) सिविल अपराधों की बाबत जुर्माना;
(ट) तीव्र द्यिग्दंड या द्यिगदण्ड, किंतु अवर आफिसर के रैंक से नीचे के व्यक्तियों को नहीं;
( ठ ) सक्रिय ड्यूटी के दौरान किए गए किसी अपराध के लिए तीन मास से अनधिक की अवधि के लिए वेतन और भत्तों का समपहरण ;
(ड) सेवा से पदच्युति से दंडित व्यक्ति की दशा में वेतन और भत्तों की सभी बकाया और अन्य लोक धन का समपहरण, जो ऐसी पदच्युति के समय उसको शोध्य हों;
(ढ) वेतन और भत्तों का तब तक के लिए रोक दिया जाना जब तक उस साबित हुई हानि या नुकसान की प्रतिपूर्ति न हो जाए जो उस अपराध के कारण हुआ है जिसके लिए वह सिद्धदोष ठहराया गया है ।
(2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रत्येक दंड उपरोक्त मापमान में अपने पूर्ववर्ती प्रत्येक दंड से कोटि में निम्नतर समझा जाएगा ।
52. बल न्यायालयों द्वारा आनुकल्पिक दंड-इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, बल न्यायालय ऐसे किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है, धारा 16 से धारा 48 में (जिनमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं) विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध को सिद्धदोष ठहराए जाने पर, या तो वह विशिष्ट दंड जिससे उस अपराध के दंडनीय होने का कथन उक्त धाराओं में है या उसके बदले में धारा 51 में दिए गए मापमान में का कोई निम्नतर दंड, अपराध की प्रकृति और मात्रा को ध्यान में रखते हुए, अधिनिर्णीत कर सकेगा ।
53. दंडों का संयोजन- बल न्यायालय , किसी अन्य दंड के अतिरिक्त या उसके बिना , धारा 51 की उपधारा (1) के खंड ( ग ) में विनिर्दिष्ट दंड या उस उपधारा के खंड ( च ) से खंड ( ढ ) में विनिर्दिष्ट कोई एक या अधिक दंड अधिनिर्णीत कर सकेगा ।
54. सक्रिय ड्यूटी पर सिद्धदोष ठहराए गए व्यक्ति का बल में प्रतिधारण-जब किसी अभ्यावेशित व्यक्ति को उस समय के दौरान जब वह सक्रिय ड्यूटी पर है, बल न्यायालय द्वारा पदच्युति सहित या रहित कारावास का दंडादेश दिया गया हो, तब विहित आफिसर यह निदेश दे सकेगा कि ऐसे व्यक्ति को सामान्य सैनिक श्रेणी में सेवा करने के लिए प्रतिधृत रखा जाए और ऐसी सेवा उसके कारावास की अवधि के भाग के रूप में गिनी जाएगी ।
55. बल न्यायालयों द्वारा दंडित किए जाने से अन्यथा दंडित किया जाना-ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जो इस अधिनियम के अधीन हैं, किए गए अपराधों के बारे में दंड, बल न्यायालय के मध्यक्षेप के बिना, धारा 56, धारा 58 और धारा 59 में कथित रीति से भी दिए जा सकेंगे ।
56. लघु दंड -( 1) धारा 57 के उपबंधों के अधीन रहते हुए , कंमाडेंट के रैंक का या उससे ऊपर के रैंक का कोई कमान आफिसर ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध , जो इस अधिनियम के अधीन है और जो किसी आफिसर या अधीनस्थ आफिसर से भिन्न है और जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है , विहित रीति से कार्यवाही कर सकेगा और ऐसे व्यक्ति को निम्नलिखित एक या अधिक दंड विहित विस्तार तक अधिनिर्णीत कर सकेगा , अर्थात्ः -
(क) बल अभिरक्षा में अट्ठाईस दिन तक का कारावास;
(ख) अट्ठाईस दिन तक का निरोध;
(ग) अट्ठाईस दिन तक का लाइन्स का परिरोध;
(घ) अतिरिक्त पहरा या ड्यूटी;
(ङ) किसी विशेष पद से या विशेष उपलब्धियों या किसी कार्यकारी रैंक से वंचित करना;
(च) तीव्र धिग्दंड या धिग्दंड;
(छ) किसी एक मास में चौदह दिन के वेतन तक का जुर्माना;
(ज) उसके वेतन और भत्तों में से ऐसी राशि की कटौती जो उसके द्वारा किसी अपराध के, जिसके लिए उसे दंडित किया गया है, किए जाने से हुई किसी हानि या नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित है ।
(2) यदि बल के किसी यूनिट, प्रशिक्षण केन्द्र या अन्य स्थापन का समादेशन द्वितीय कमान आफिसर या उपकमांडेंट के रैंक के किसी आफिसर द्वारा अस्थायी रूप में किया जा रहा है तो ऐसे आफिसर को उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किसी कमान आफिसर की पूर्ण शक्ति प्राप्त होगी ।
(3) धारा 57 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी कंपनी या टुकड़ी या चौकी का समादेशन करने वाले उपकमांडेंट या सहायक कमांडेंट को किसी व्यक्ति के विरुद्ध, जो इस अधिनियम के अधीन है और जो आफिसर या अधीनस्थ आफिसर से भिन्न है और जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है, कार्यवाही करने की और उपधारा (1) के खंड (क) से खंड (घ) और खंड (ज) में विनिर्दिष्ट एक या अधिक दंड विहित विस्तार तक अधिनिर्णीत करने की शक्ति होगी परन्तु खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) में से प्रत्येक के अधीन अधिनिर्णीत दंड की अधिकतम सीमा चौदह दिन से अधिक नहीं होगी ।
(4) किसी ऐसे अधीनस्थ आफिसर को जो उप-निरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है और जो किसी टुकड़ी या चौकी का समादेशन कर रहा है, किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध, जो इस अधिनियम के अधीन है और जो अधीनस्थ आफिसर या अवर आफिसर से भिन्न है और जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है, कार्यवाही करने की और उपधारा (1) के खंड (ग) और खंड (घ) के अधीन विनिर्दिष्ट एक या अधिक दंड विहित विस्तार तक अधिनिर्णीत करने की शक्ति होगी परन्तु खंड (ग) के अधीन अधिनिर्णीत दंड की अधिकतम सीमा चौदह दिन से अधिक नहीं होगी ।
57. धारा 56 के अधीन दंड की परिसीमा-(1) धारा 56 की उपधारा (1) के खंड (क), खंड (ख), खंड (ग) और खंड (घ) में विनिर्दिष्ट दो या अधिक दंड के अधिनिर्णयन की दशा में खंड (ग) या खंड (घ) में विनिर्दिष्ट दंड खंड (क) या खंड (ख) में विनिर्दिष्ट दंड के पूरा होने पर ही प्रभावशील होगा ।
(2) जब किसी व्यक्ति को धारा 56 की उपधारा (1) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) में विनिर्दिष्ट दो या अधिक दंड संयुक्ततः अधिनिर्णीत किए गए हों अथवा तब अधिनिर्णीत किए गए हों जब वह उक्त एक या अधिक दंड पहले से ही भोग रहा हो, तब ऐसे दंड का संपूर्ण विस्तार कुल मिलाकर बयालीस दिन से अधिक नहीं होगा ।
(3) धारा 56 की उपधारा (1) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) में विनिर्दिष्ट दंड किसी ऐसे व्यक्ति को अधिनिर्णीत नहीं किए जाएंगे जो अवर आफिसर के रैंक का है या जो उस अपराध के किए जाने के समय, जिसके लिए उसे दंडित किया जाए, ऐसे रैंक का था ।
(4) धारा 56 की उपधारा (1) के खंड (च) में विनिर्दिष्ट दंड अवर आफिसर के रैंक के नीचे से किसी व्यक्ति को अधिनिर्णीत नहीं किया जाएगा ।
58. महानिरीक्षक और अन्य आफिसरों द्वारा कमांडेंट के रैंक के या उनसे नीचे के व्यक्तियों को दंडित किया जाना-(1) ऐसा आफिसर, जो महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है, कमांडेंट के रैंक के या कमांडेंट के रैंक से नीचे के किसी ऐसे आफिसर के विरुद्ध जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है, विहित रीति से कार्यवाही कर सकेगा और निम्नलिखित एक या अधिक दंड अधिनिर्णीत कर सकेगा, अर्थात्ः-
(क) ज्येष्ठता का समपहरण या उनमें से किसी ऐसे आफिसर की दशा में, जिसकी प्रोन्नति सेवाकाल की लंबाई पर निर्भर है, एक वर्ष से अनधिक की अवधि के सेवाकाल का इसलिए समपहरण कि वह प्रोन्नति के प्रयोजन के लिए न गिना जाए, किन्तु यह बात दंड अधिनिर्णीत किए जाने के पूर्व अभियुक्त के यह निर्वाचन करने के अधिकार के अधीन होगी कि उसका विचारण, बल न्यायालय द्वारा किया जाएगा;
(ख) तीव्र धिग्दंड या धिग्दंड;
(ग) उसके वेतन और भत्ते में से ऐसी राशि की कटौती जो किसी ऐसी साबित हानि या नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित है जो उस अपराध के कारण हुआ है जिसके लिए वह सिद्धदोष ठहराया गया है ।
(2) कोई आफिसर जो अपर उप महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है , ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध , जो सूबेदार मेजर या निरीक्षक के रैंक या उसके नीचे के रैंक का है और जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है , विहित रीति से कार्यवाही कर सकेगा और ऐसे व्यक्ति को निम्नलिखित एक या अधिक दंड अधिनिर्णीत कर सकेगा , अर्थात् : -
(क) ज्येष्ठता का समपहरण या उनमें से किसी ऐसे आफिसर की दशा में जिसकी प्रोन्नति सेवाकाल की लंबाई पर निर्भर है, एक वर्ष से अनधिक की अवधि के सेवाकाल का इसलिए समपहरण कि वह प्रोन्नति के प्रयोजन के लिए न गिना जाए, किन्तु यह बात दंड अधिनिर्णीत किए जाने के पूर्व अभियुक्त के यह निर्वाचन करने के अधिकार के अधीन होगी कि उसका विचारण, बल न्यायालय द्वारा किया जाए;
(ख) तीव्र धिग्दंड या धिग्दंड;
(ग) उसके वेतन और भत्ते में से ऐसी राशि की कटौती जो किसी ऐसी साबित हानि या नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित है जो उस अपराध के कारण हुआ है जिसके लिए वह सिद्धदोष ठहराया गया है ।
(3) कोई आफिसर जो कमांडेंट के रैंक से नीचे का नहीं है , ऐसे किसी व्यक्ति के विरुद्ध , जो सूबेदार मेजर या निरीक्षक के रैंक या उसके नीचे के रैंक का है और जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप है , विहित रीति से कार्यवाही कर सकेगा और ऐसे व्यक्ति को निम्नलिखित एक या दोनों दंड अधिनिर्णीत कर सकेगा , अर्थात्ः -
(क) तीव्र धिग्दंड या धिग्दंड;
(ख) उसके वेतन और भत्ते में से ऐसी राशि की कटौती जो किसी ऐसी साबित हानि या नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित है जो उस अपराध के कारण हुआ है जिसके लिए वह सिद्धदोष ठहराया गया है ।
59. दंडादेश का रद्दकरण, फेरफार या विप्रेषण-(1) ऐसे प्रत्येक मामले में जिसमें दंड धारा 58 के अधीन अधिनिर्णीत किया गया है, दंड अधिनिर्णीत करने वाले आफिसर द्वारा कार्यवाहियों की प्रमाणित सत्य प्रतियां विहित वरिष्ठ प्राधिकारी को विहित रीति से भेजी जाएंगी जो यदि उसे यह प्रतीत होता है कि अधिनिर्णीत दंड अवैध, अनुचित या अत्यधिक है तो वह उस दंड को रद्द, परिवर्तित या उसको विप्रेषित कर सकेगा और ऐसा अन्य निदेश दे सकेगा, जो उस मामले की परिस्थितियों में समुचित हों ।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए, वरिष्ठ प्राधिकारी" से अभिप्रेत है, -
(क) कोई ऐसा आफिसर जो दंड अधिनिर्णीत करने वाले आफिसर से समादेश में वरिष्ठ है;
(ख) महानिदेशक द्वारा अधिनिर्णीत दंड की दशा में, केन्द्रीय सरकार ।
60. सामूहिक जुर्माने-(1) जब कभी कोई शस्त्र या शस्त्र का भाग या गोलाबारूद, जो किसी यूनिट के उपस्कर का भाग है, खो जाता है या चोरी हो जाता है, तब ऐसा कमान आफिसर, जो उस यूनिट के कमांडेंट के रैंक से नीचे का नहीं है, ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह ठीक समझे और नियमों के अधीन रहते हुए, अधीनस्थ आफिसरों, अवर आफिसरों और ऐसे यूनिट के जवानों पर या उनमें से उतनों पर, जितने उसके निर्णय में ऐसे खो जाने या चोरी के लिए उत्तरदायी ठहराए जाने चाहिएं, सामूहिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।
(2) ऐसा जुर्माना उन व्यक्तियों के, जिन पर वह पड़ता है, वेतन की प्रतिशतता के रूप में निर्धारित किया जाएगा ।
अध्याय 5
वेतन और भत्तों में से कटौतियां
61. इस अधिनियम के अधीन के व्यक्तियों के वेतन और भत्तों में से कटौतियां-(1) किसी आफिसर के वेतन और भत्तों में से निम्नलिखित कटौतियां की जा सकेंगी, अर्थात्: -
(क) ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जिस दिन वह छुट्टी बिना अनुपस्थित रहता है, आफिसर को शोध्य सभी वेतन और भत्ते तब के सिवाय जब उस महानिदेशक को जिसके अधीन वह उस समय सेवा कर रहा है कोई समाधानप्रद स्पष्टीकरण दे दिया गया है और वह उसके द्वारा स्वीकार किया गया है;
(ख) ऐसे प्रत्येक दिन के लिए सभी वेतन और भत्ते जिस दिन वह ऐसे अपराध के आरोप पर अभिरक्षा में है जिस अपराध के लिए, तत्पश्चात् किसी दंड न्यायालय या बल न्यायालय द्वारा या आफिसर द्वारा जो धारा 58 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है, सिद्धदोष ठहराया जाता है;
(ग) इस अधिनियम के अधीन के किसी व्यक्ति के ऐसे वेतन की जो उसने विधिविरुद्धतया प्रतिधृत कर रखा है या जिसे संदाय करने से उसने विधिविरुद्धता इंकार कर दिया है, प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित कोई राशि;
( घ ) किसी अपराध के किए जाने से हुए किन्हीं व्ययों , हानि , नुकसान या नाश के लिए ऐसे प्रतिकर की , जो उस बल न्यायालय द्वारा जिसके द्वारा वह ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है या किसी ऐसे आफिसर द्वारा जो धारा 58 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है , अवधारित किया जाए , प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित कोई राशि ;
(ङ) वे सभी वेतन और भत्ते जिनका आदेश बल न्यायालय द्वारा किया गया हो;
( च ) किसी दंड न्यायालय द्वारा या किसी बल न्यायालय द्वारा अधिनिर्णीत जुर्माने के संदाय के लिए अपेक्षित कोई राशि ;
(छ) लोक-संपत्ति या बल-संपत्ति की किसी ऐसी हानि, नुकसान या नाश के जिसकी बाबत उस महानिरीक्षक को, जिसके अधीन आफिसर उस समय सेवा कर रहा है, सम्यक् अन्वेषण के पश्चात् यह प्रतीत होता है कि वह उस आफिसर के सदोष कार्य से या उपेक्षा से घटित हुआ है, प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित कोई राशि;
(ज) केन्द्रीय सरकार के आदेश से समपहृत सभी वेतन और भत्ते, यदि महानिदेशक द्वारा उस निमित्त गठित जांच न्यायालय का यह निष्कर्ष हो कि वह आफिसर शत्रु से जा मिला था या जब वह शत्रु के हाथ में था तब उसने शत्रु की ओर से या शत्रु के आदेशों के अधीन सेवा की थी या उसने किसी रीति से शत्रु की सहायता की थी या सम्यक् पूर्वावधानी न बरत कर या आदेशों की अवज्ञा या कर्तव्य की जानबूझकर उपेक्षा करके उसने स्वयं को शत्रु द्वारा कैदी बना लिए जाने दिया था या शत्रु द्वारा कैदी बना लिए जाने पर तब जब उसके लिए अपनी सेवा पर वापस आ जाना संभव था, वह ऐसा करने में असफल रहा था;
(झ) केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा उसकी पत्नी या उसकी धर्मज संतान या अधर्मज संतान या सौतेली संतान के भरण-पोषण के लिए दिए जाने के लिए या उक्त सरकार द्वारा उक्त पत्नी या संतान को दी गई सहायता के खर्चे हेतु दिए जाने के लिए अपेक्षित कोई राशि ।
(2) धारा 63 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी ऐसे व्यक्ति के जो इस अधिनियम के अधीन है और जो किसी ऐसे आफिसर से भिन्न है, वेतन और भत्तों में से निम्नलिखित कटौतियां की जा सकेंगी, अर्थात्: -
(क) अभित्यजन या छुट्टी बिना या युद्ध कैदी होने के कारण अनुपस्थिति के प्रत्येक दिन के लिए तब के सिवाय जब उसके कमान आफिसर को समाधानप्रद स्पष्टीकरण दे दिया गया है और वह उसके द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, तथा किसी दंड न्यायालय, बल न्यायालय या किसी ऐसे आफिसर द्वारा जो धारा 56 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है, अधिनिर्णीत कारावास के प्रत्येक दिन के लिए सभी वेतन और भत्ते;
(ख) ऐसे प्रत्येक दिन के लिए सभी वेतन और भत्ते जिस दिन वह किसी ऐसे अपराध के आरोप पर, जिसके लिए वह तत्पश्चात् किसी दंड न्यायालय या बल न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया जाता है, या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के ऐसे आरोप पर, जिसके लिए तत्पश्चात् उसे किसी ऐसे आफिसर द्वारा जो धारा 56 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है, कारावास अधिनिर्णीत किया जाता है, अभिरक्षा में है:
(ग) ऐसे प्रत्येक दिन के लिए सभी वेतन और भत्ते जिस दिन वह ऐसी रुग्णता के कारण अस्पताल में रहा है जिसकी बाबत उसकी परिचर्या करने वाले चिकित्सा आफिसर द्वारा यह प्रमाणपत्र दिया गया है कि वह उसके द्वारा किए गए इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से कारित हुई है;
( घ ) ऐसे प्रत्येक दिन के लिए सभी वेतन और भत्ते जिस दिन वह ऐसी रुग्णता के कारण अस्पताल में रहा है जिसकी बाबत उसकी परिचर्या करने वाले चिकित्सा आफिसर द्वारा यह प्रमाणपत्र दिया गया है कि वह उसके अपने अवचार या प्रज्ञाहीनता से कारित हुई है , उतनी राशि जितनी महानिदेशक के आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए ;
(ङ) वे सभी वेतन और भत्ते जिनके समपहरण या रोक दिए जाने का आदेश भी बल न्यायालय द्वारा या किसी ऐसे आफिसर द्वारा दिया गया है जो धारा 56 और धारा 58 में से किसी के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है;
( च ) शत्रु से उसका उद्धार किए जाने के और सेवा से उसकी ऐसी पदच्युति के , जो शत्रु द्वारा उसके कैदी बनाए जाने के समय के या शत्रु के हाथ में रहने के दौरान उसके आचरण के परिणामस्वरूप हुई है , बीच के प्रत्येक दिन के सभी वेतन और भत्ते ;
(छ) केन्द्रीय सरकार को अथवा बल के किसी भवन या संपत्ति या किसी प्राइवेट निधि को उसके द्वारा कारित व्ययों, हानि, नुकसान या नाश के लिए ऐसे प्रतिकर की, जो उसके कमान आफिसर द्वारा अधिनिर्णीत किया जाए, प्रतिपूर्ति के लिए अपेक्षित कोई राशि;
(ज) किसी दंड न्यायालय द्वारा, किसी ऐसे बल न्यायालय द्वारा जो धारा 49 के अधीन अधिकारिता का प्रयोग कर रहा है या किसी ऐसे आफिसर द्वारा जो धारा 56 और धारा 60 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है, अधिनिर्णीत जुर्माने के संदाय के लिए अपेक्षित कोई राशि;
(झ) केन्द्रीय सरकार या किसी विहित आफिसर के आदेश द्वारा उसकी पत्नी या उसकी धर्मज संतान या अधर्मज संतान या सौतेली संतान के भरण-पोषण के लिए दी जाने के लिए या उक्त सरकार द्वारा उक्त पत्नी या संतान को दी गई सहायता के खर्चे हेतु दिए जाने के लिए अपेक्षित कोई राशि ।
(3) इस धारा के अधीन अनुपस्थिति या अभिरक्षा के समय की संगणना के लिए-
(क) किसी भी व्यक्ति को एक दिन के लिए अनुपस्थिति या अभिरक्षा में तब तक नहीं माना जाएगा जब तक कि अनुपस्थिति या अभिरक्षा, चाहे पूर्णतः एक दिन में या भागतः एक दिन में और भागतः किसी अन्य दिन में, लगातार छह या अधिक घंटों तक न रही हो;
(ख) एक दिन से कम की अनुपस्थिति या अभिरक्षा को एक दिन की अनुपस्थिति या अभिरक्षा गिना जा सकेगा यदि ऐसी अनुपस्थिति या अभिरक्षा ने उस अनुपस्थित व्यक्ति को बल के सदस्य के रूप में किसी ऐसे कर्तव्य की पूर्ति करने से निवारित किया है जो इसके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति पर डाला गया है;
(ग) लगातार बारह या अधिक घंटों की अनुपस्थिति या अभिरक्षा को उस प्रत्येक पूरे दिन की अनुपस्थिति या अभिरक्षा गिना जा सकेगा जिसके किसी प्रभाग के दौरान वह व्यक्ति अनुपस्थित था या अभिरक्षा में रहा था;
(घ) अनुपस्थिति या कारावास की अवधि को जो मध्य रात्रि के पूर्व प्रारंभ होती है और उसके पश्चात् समाप्त होती है, एक दिन के रूप में गिना जा सकेगा ।
62. विचारण के दौरान वेतन और भत्ते- इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति की दशा में , जो किसी अपराध के आरोप पर अभिरक्षा में है या ड्यूटी से निलंबित है , विहित आफिसर यह निदेश दे सकेगा कि धारा 61 की उपधारा (1) के खंड ( ख ) और उपधारा (2) के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए , ऐसे व्यक्ति के पूरे वेतन और भत्ते या उनके कोई भाग उस आरोप के , जो उसके विरुद्ध है , विचारण का परिणाम लंबित रहने तक , विधारित रखे जाएं ।
63. कतिपय कटौतियों की परिसीमा- किसी व्यक्ति के वेतन और भत्तों में से धारा 61 की उपधारा (2) के खंड ( ङ ) और खंड ( छ ) से खंड ( झ ) के अधीन की गई कुल कटौतियां तब के सिवाय जब कि वह पदच्युति या पद से हटाए जाने से दंडादिष्ट किया गया हो , किसी एक मास में उसके उस मास के वेतन और भत्तों के आधे से अधिक नहीं होंगी ।
64. किसी व्यक्ति को शोध्य लोक धन में से कटौती-किसी व्यक्ति के वेतन और भत्तों में से कटौती के लिए इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई राशि, उसे वसूल करने के किसी अन्य ढंग पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, पेंशन से भिन्न किसी ऐसे लोक धन में से काटी जा सकेगी, जो उसे शोध्य है ।
65. युद्ध कैदी के आचरण की जांच के दौरान उसके वेतन और भत्ते-जहां उस अधिनियम के अधीन किसी व्यक्ति के उस समय के आचरण की जांच, जब वह शत्रु द्वारा कैदी बनाया जा रहा था या जब वह शत्रु के हाथों में था, इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अधीन की जानी है, वहां महानिदेशक या उसके द्वारा प्राधिकृत कोई आफिसर यह आदेश दे सकेगा कि ऐसे व्यक्ति के पूरे वेतन और भत्ते या उनके कोई भाग, उस जांच का परिणाम लंबित रहने तक, विधारित रखे जाएं ।
66. कटौतियों का परिहार-वेतन और भत्तों में से इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत किसी कटौती का परिहार ऐसी रीति से और इतने विस्तार तक ऐसे प्राधिकारी द्वारा किया जा सकेगा जो समय-समय पर विहित किया जाए ।
67. युद्ध कैदी की परिहार की गई कटौतियों तथा वेतन और भत्तों में से उसके आश्रितों के लिए उपबंध-(1) इस अधिनियम के अधीन ऐसे सभी व्यक्तियों की दशा में, जो ऐसे युद्ध कैदी हैं जिनके वेतन और भत्ते धारा 61 की उपधारा (1) के खंड (ज) या उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन समपहृत किए गए हैं किन्तु जिनकी बाबत धारा 66 के अधीन कोई परिहार किया गया है, केंद्रीय सरकार या महानिदेशक के लिए, जब केंद्रीय सरकार द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो, यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसे व्यक्तियों के किन्हीं आश्रितों के लिए वेतन और भत्तों के संबंध में उपबंध करे और उस दशा में वह परिहार ऐसे वेतन और भत्तों में से ऐसा करने के पश्चात् जो शेष रहे उतने को ही लागू समझा जाएगा ।
(2) केंद्रीय सरकार या महानिदेशक के लिए, जब केंद्रीय सरकार द्वारा इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो, यह विधिपूर्ण होगा कि वह इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे व्यक्ति के, जो युद्ध कैदी है या लापता है, किसी आश्रित के लिए उसके वेतन और भत्तों के संबंध में उपबंध करे ।
68. वह अवधि जिसके दौरान कोई व्यक्ति युद्ध कैदी समझा जाता है-धारा 67 के प्रयोजनों के लिए किसी व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह जब तक उसके आचरण की ऐसी जांच जैसी धारा 65 में निर्दिष्ट है, समाप्त नहीं हो जाती तब तक और यदि वह ऐसे आचरण के परिणामस्वरूप, सेवा से पदच्युत किया जाता है तो ऐसे पदच्युत किए जाने की तारीख तक युद्ध कैदी बना रहा है ।
अध्याय 6
गिरफ्तारी और विचारण के पूर्व कार्यवाहियां
69. अपराधियों की अभिरक्षा-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है जिस पर किसी अपराध का आरोप है, किसी वरिष्ठ आफिसर के आदेश से बल अभिरक्षा में लिया जा सकेगा ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी , कोई आफिसर यह आदेश दे सकेगा कि किसी ऐसे अन्य आफिसर को , भले ही ऐसा अन्य आफिसर उच्चतर रैंक का हो , जो झगड़ा , दंगा या उपद्रव करने में लगा हो , बल अभिरक्षा में ले लिया जाए ।
70. निरोध के संबंध में कमान आफिसर का कर्तव्य -(1) प्रत्येक कमान आफिसर का यह कर्तव्य होगा कि इस बात की सतर्कता बरते कि जब उसके समादेश के अधीन के किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है तब उस व्यक्ति को आरोप का अन्वेषण किए बिना , उस समय के पश्चात् जब उसको अभिरक्षा में सुपुर्द किए जाने की रिपोर्ट ऐसे आफिसर को की गई है , अड़तालीस घंटे से अधिक के लिए अभिरक्षा में तभी निरुद्ध रखा जाए जब उक्त अवधि के भीतर विहित प्रक्रिया में ऐसे अन्वेषण का किया जाना लोक सेवा की दृष्टि से उसे असाध्य प्रतीत होता है ।
(2) कमान आफिसर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के मामले की, जिसे अड़तालीस घंटे से अधिक की अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है और ऐसे निरुद्ध रखे जाने के कारणों की रिपोर्ट अपने से ठीक उच्चतर आफिसर को या ऐसे अन्य आफिसर को देगा जिसको, उस व्यक्ति का जिस पर आरोप है, विचारण करने के लिए बल न्यायालय संयोजित करने का आवेदन किया जा सकेगा ।
(3) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अड़तालीस घंटों की अवधि की गणना करने में, रविवार और अन्य लोक अवकाश के दिन अपवर्जित किए जाएंगे ।
(4) वह रीति जिसमें और वह अवधि जिसके लिए किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है, उसके द्वारा किए गए किसी अपराध के लिए किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा किए जाने वाले विचारण के लंबित रहने तक, बल अभिरक्षा में लिया जा सकेगा और निरुद्ध रखा जा सकेगा, वह होगी, जो विहित की जाए ।
71. सुपुर्दगी और विचारण किए जाने के बीच का अंतराल- ऐसे प्रत्येक मामले में , जहां कोई ऐसा व्यक्ति , जो धारा 69 में वर्णित है और सक्रिय ड्यूटी पर नहीं है , उसके विचारण के लिए बल न्यायालय संयोजित किए बिना , ऐसी अभिरक्षा में आठ दिन से दीर्घतर अवधि के लिए रहता है वहां उसके कमान आफिसर द्वारा विलंब का कारण देने वाली एक विशेष रिपोर्ट , विहित रीति से की जाएगी और ऐसी ही रिपोर्ट प्रत्येक आठ दिनों के अंतरालों पर तब तक भेजी जाएगी जब तक बल न्यायालय संयोजित न हो जाए या उस व्यक्ति को अभिरक्षा से निर्मुक्त न कर दिया जाए ।
72. सिविल प्राधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी-जब कभी कोई ऐसा व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है और जो इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त है, किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस आफिसर की अधिकारिता के भीतर है तब वह मजिस्ट्रेट या पुलिस आफिसर उस व्यक्ति के कमान आफिसर द्वारा या ऐसे आफिसर द्वारा, जिसे कमान आफिसर ने इस निमित्त प्राधिकृत किया है, हस्ताक्षरित उस आशय के लिखित आवेदन की प्राप्ति पर उन व्यक्ति के पकड़े जाने और बल अभिरक्षा में दिए जाने में सहायता करेगा ।
73. अभित्याजकों को पकड़ना-(1) जब कभी कोई ऐसा व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, अभित्यजन करता है तब उस यूनिट का, जिसका वह अंग है या जिससे वह संलग्न है, कमान आफिसर ऐसे अभित्यजन की जानकारी ऐसे सिविल प्राधिकारियों को देगा, जो उसकी राय में, अभित्याजक को पकड़ने में सहायता देने में समर्थ है; और तब वे प्राधिकारी उक्त अभित्याजक को पकड़ने के लिए उसी रीति से, कार्रवाई करेंगे मानो वह ऐसा व्यक्ति हो, जिसे पकड़ने के लिए किसी मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट निकाला गया है और अभित्याजक को पकड़ लिए जाने पर उसे बल अभिरक्षा में देंगे ।
(2) कोई भी पुलिस आफिसर किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में युक्तियुक्त रूप से यह विश्वास है कि वह इस अधिनियम के अधीन है और अभित्याजक है या प्राधिकार के बिना यात्रा कर रहा है, वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकेगा और विधि के अनुसार बरते जाने के लिए उसे अविलम्ब निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष लाएगा ।
74. छुट्टी बिना अनुपस्थित रहने की जांच-(1) जब ऐसा कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है, सम्यक् प्राधिकार के बिना तीस दिन की अवधि के लिए ड्यूटी से अनुपस्थित रहा है तब एक जांच न्यायालय, यथासाध्य शीघ्र, ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से नियुक्त किया जाएगा, जो विहित की जाए; और वह न्यायालय उस व्यक्ति की अनुपस्थिति के संबंध में और उसकी देख-रेख के लिए सौंपी गई सरकारी संपत्ति में या किन्हीं आयुधों, गोलाबारुद, उपस्कर, उपकरणों, कपड़ों या आवश्यक वस्तुओं में हुई कमी के, यदि कोई हो, बारे में जांच विहित रीति से दिलाई गई शपथ या कराए गए प्रतिज्ञान पर करेगा और यदि उसका इस तथ्य की बाबत समाधान हो जाता है कि अनुपस्थिति सम्यक् प्राधिकार या अन्य पर्याप्त हेतुक के बिना हुई है तो न्यायालय उस अनुपस्थिति और उसकी अवधि तथा उक्त कमी की, यदि कोई हो, घोषणा करेगा और उस यूनिट का, जिसका वह व्यक्ति अंग है या जिससे वह संलग्न है, कमान आफिसर उसे विहित रीति से लेखबद्ध करेगा ।
(1) यदि वह व्यक्ति, जिसे अनुपस्थित घोषित किया गया है, तत्पश्चात् अभ्यर्पण नहीं करता है या पकड़ा नहीं जाता है, उसे इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अभित्याजक समझा जाएगा ।
75. बल पुलिस आफिसर -(1) महानिदेशक या कोई विहित आफिसर उपधारा (2) और उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट कृत्यों का निर्वहन करने के लिए व्यक्तियों को ( जिन्हें इस अधिनियम में बल पुलिस कहा गया है ) नियुक्त कर सकेगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त व्यक्ति का कर्तव्य है, किसी अपराध के लिए परिरुद्ध व्यक्तियों को अपने भारसाधन में लेना, बल में सेवा करने वाले या उससे संलग्न व्यक्तियों में सुव्यवस्था और अनुशासन बनाए रखना और उसके द्वारा उसका भंग किया जाना निवारित करना ।
(3) धारा 69 में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (1) के अधीन नियुक्त व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है और अपराध करता है या जिस पर किसी अपराध का आरोप है, विचारण के लिए किसी भी समय गिरफ्तार और निरुद्ध कर सकेगा तथा बल न्यायालय द्वारा या किसी ऐसे आफिसर द्वारा, जो धारा 56 के अधीन प्राधिकार का प्रयोग कर रहा है, अधिनिर्णीत दंडादेश के अनुसरण में दंड को कार्यान्वित भी कर सकेगा किन्तु वह अपने प्राधिकार से कोई दंड नहीं देगा:
परंतु किसी आफिसर को किसी अन्य आफिसर के आदेश के बिना इस प्रकार गिरफ्तार या निरुद्ध नहीं किया जाएगा ।
अध्याय 7
बल न्यायालय
76. बल न्यायालयों के प्रकार-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए बल न्यायालय तीन प्रकार के होंगे, अर्थात्ः-
(क) जनरल बल न्यायालय;
(ख) पैटी बल न्यायालय; और
(ग) समरी बल न्यायालय,
जो विहित रीति में संयोजित किए जाएंगे ।
77. जनरल बल न्यायालय संयोजित करने की शक्ति-जनरल बल न्यायालय, केन्द्रीय सरकार द्वारा या महानिदेशक द्वारा या महानिदेशक के अधिपत्र द्वारा इस निमित्त सशक्त किए गए किसी आफिसर द्वारा संयोजित किया जा सकेगा ।
78. पैटी बल न्यायालय संयोजित करने की शक्ति-पैटी बल न्यायालय, जनरल बल न्यायालय संयोजित करने की शक्ति रखने वाले आफिसर द्वारा या ऐसे किसी आफिसर के अधिपत्र द्वारा इस निमित्त सशक्त किए गए आफिसर द्वारा संयोजित किया जा सकेगा ।
79. धारा 77 और धारा 78 के अधीन निकाले गए अधिपत्र-धारा 77 या धारा 78 के अधीन निकाले गए अधिपत्र में ऐसे निर्बंधन, प्रतिबंध या शर्तें हो सकेंगी जिन्हें उसे निकालने वाला आफिसर ठीक समझे ।
80. जनरल बल न्यायालय की संरचना-जनरल बल न्यायालय कम से कम पांच आफिसरों से मिलकर बनेगा ।
81. पैटी बल न्यायालय की संरचना-पैटी बल न्यायालय कम से कम तीन आफिसरों से मिलकर बनेगा ।
82. समरी बल न्यायालय-(1) समरी बल न्यायालय किसी यूनिट के कमान आफिसर द्वारा अधिविष्ट किया जा सकेगा और वह न्यायालय अकेले उससे ही गठित होगा ।
(2) कार्यवाहियों में दो अन्य ऐसे व्यक्ति आरंभ से अन्त तक हाजिर रहेंगे जो आफिसर या अधीनस्थ आफिसर या दोनों में से एक-एक होंगे और जिन्हें उस रूप में न तो शपथ दिलाई जाएगी और न प्रतिज्ञान कराया जाएगा ।
83. बल न्यायालय का विघटन -(1) यदि विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् किसी बल न्यायालय में उन आफिसरों की संख्या , उस न्यूनतम संख्या से जो इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित है , कम हो जाती है तो उसे विघटित कर दिया जाएगा ।
(2) यदि निष्कर्ष के पहले, यथास्थिति, संबंधित जज अटर्नी जनरल या उप जज अटर्नी जनरल या अपर जज अटर्नी जनरल की या अभियुक्त की रुग्णता के कारण विचारण चलते रहना असंभव हो जाता है तो बल न्यायालय को विघटित कर दिया जाएगा ।
(3) यदि उस प्राधिकारी या आफिसर को जिसने बल विचारण संयोजित किया है यह प्रतीत होता है कि सेवा की अत्यावश्यकताओं या अनुशासनिक आवश्यकताओं ने उक्त बल न्यायालय का चालू रहना असंभव या असमीचीन बना दिया है तो वह ऐसे न्यायालय को विघटित कर सकेगा ।
(4) जहां बल न्यायालय को इस धारा के अधीन विघटित कर दिया जाता है , वहां अभियुक्त का विचारण फिर से किया जा सकेगा ।
84. जनरल बल न्यायालय की शक्तियां-जनरल बल न्यायालय को किसी ऐसे व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है, ऐसे अपराध के लिए, जो उसके अधीन दंडनीय है, विचारण करने और उसके द्वारा प्राधिकृत कोई दंडादेश पारित करने की शक्ति होगी ।
85. पैटी बल न्यायालय की शक्तियां-पैटी बल न्यायालय को आफिसर या अधीनस्थ आफिसर से भिन्न किसी व्यक्ति का जो इस अधिनियम के अधीन है, ऐसे किसी अपराध के लिए, जो उसके अधीन दंडनीय है, विचारण करने की तथा इस अधिनियम द्वारा अधिकृत कोई ऐसा दंडादेश पारित करने की, जो मृत्यु दंडादेश या दो वर्ष से अधिक के कारावास के दंडादेश से भिन्न है, शक्ति होगी ।
86. समरी बल न्यायालय की शक्तियां-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, समरी बल न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का विचारण कर सकेगा ।
(2) जब तुरन्त कार्रवाई के लिए गंभीर कारण नहीं है और अनुशासन का अहित किए बिना अभिकथित अपराधी के विचारण के लिए उस आफिसर को निदेश किया जा सकता है जो पैटी बल न्यायालय संयोजित करने के लिए सशक्त है तब समरी बल न्यायालय अधिविष्ट करने वाला कोई आफिसर, धारा 16, धारा 19 और धारा 49 में से किसी के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का या न्यायालय अधिविष्ट करने वाले आफिसर के विरुद्ध किसी अपराध का विचारण ऐसे निर्देश के बिना नहीं करेगा ।
(3) समरी बल न्यायालय, आफिसर या अधीनस्थ आफिसर से भिन्न किसी ऐसे व्यक्ति का विचारण कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन है और जो न्यायालय को अधिविष्ट करने वाले आफिसर के समादेश के अधीन है ।
(4) समरी बल न्यायालय , मृत्यु या उपधारा (5) में विनिर्दिष्ट परिसीमा से अधिक की अवधि के कारावास के दंडादेश से भिन्न कोई भी ऐसा दंडादेश पारित कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन पारित किया जा सकता है ।
(5) उपधारा (4) में निर्दिष्ट परिसीमा, -
(क) उस दशा में एक वर्ष होगी जिसमें बल न्यायालय को अधिविष्ट करने वाला आफिसर कोई ऐसा रैंक धारण करता है जो कमांडेंट के रैंक से नीचे का नहीं है;
(ख) किसी अन्य दशा में तीन मास की होगी ।
87. द्वितीय विचारण का प्रतिषेध -(1) जब किसी व्यक्ति को , जो इस अधिनियम के अधीन है , किसी बल न्यायालय या दंड न्यायालय द्वारा किसी अपराध से दोष मुक्त किया गया है या उसके लिए सिद्धदोष ठहराया गया है या उसके बारे में धारा 56 या धारा 58 के अधीन कार्यवाही की गई है तब वह उसी अपराध के लिए बल न्यायालय द्वारा पुनः विचारण के किए जाने या उक्त धाराओं के अधीन पुनः कार्यवाही किए जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा ।
(2) जब किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है किसी बल न्यायालय द्वारा किसी अपराध से दोषमुक्त किया गया है या उसके लिए सिद्धदोष ठहराया गया है उसके बारे में धारा 56 या धारा 58 के अधीन कार्यवाही की गई है तब वह उसी अपराध के लिए या उन्हीं तथ्यों पर किसी दंड न्यायालय द्वारा पुनः विचारण किए जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा ।
88. विचारण के लिए परिसीमाकाल-(1) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है, उसके सिवाय ऐसे किसी व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है, किसी अपराध के लिए बल न्यायालय द्वारा विचारण ऐसे अपराध की तारीख से तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् प्रारम्भ नहीं किया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध अभित्यजन के अपराध के या धारा 19 में वर्णित किसी अपराध के विचारण को लागू नहीं होंगे ।
(3) उपधारा (1) में वर्णित समय की अवधि की संगणना करने में वह समय अपवर्जित कर दिया जाएगा जो ऐसे व्यक्ति ने अपराध करने के पश्चात् गिरफ्तारी से बचने में व्यतीत किया है ।
89. उस अपराधी का विचारण, आदि जो इस अधिनियम के अधीन नहीं रह जाता है -(1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी व्यक्ति द्वारा उस समय किया गया था जब वह इस अधिनियम के अधीन था और अब वह इस प्रकार अधीन नहीं रह गया है वहां उसे बल अभिरक्षा में ऐसे ले लिया और रखा जा सकेगा तथा ऐसे अपराध के लिए उसका ऐसे विचारण और उसे ऐसे दंडित किया जा सकेगा मानो वह इस प्रकार अधीन बना रहा हो ।
(2) ऐसे किसी व्यक्ति का किसी अपराध के लिए विचारण तभी किया जाएगा जब उसका विचारण उसके इस अधिनियम के अधीन न रहने के पश्चात् छह मास के भीतर प्रारंभ हो जाए, अन्यथा नहीं:
परंतु इस उपधारा की कोई भी बात अभित्यजन के अपराध के लिए या धारा 19 में वर्णित किसी अपराध के लिए किसी ऐसे व्यक्ति के विचारण को न तो लागू होगी और न ऐसे किसी अपराध का विचारण करने की दंड न्यायालय की अधिकारिता पर प्रभाव डालेगी जो ऐसे न्यायालय द्वारा तथा बल न्यायालय द्वारा भी विचारणीय है ।
90. दंडादेश की अवधि के दौरान अधिनियम का लागू होना -(1) जब किसी व्यक्ति को , जो इस अधिनियम के अधीन है , कोई बल न्यायालय कारावास का दंडादेश देता है तब यह अधिनियम उसके दंडादेश की अवधि के दौरान उसे लागू होगा , भले ही उसे बल से पदच्युत कर दिया गया हो या वह अन्यथा इस अधिनियम के अधीन नहीं रह गया हो और उसे ऐसे रखा , हटाया या कारावासित और दंडित किया जा सकेगा मानो वह इस अधिनियम के अधीन बना रहा हो ।
(2) जब किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है, बल न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश दिया जाता है तब यह अधिनियम उसे तब तक लागू होगा जब तक कि वह दंडादेश कार्यान्वित नहीं कर दिया जाता है ।
91. विचारण का स्थान, आदि-(1) किसी ऐसे व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है और जो इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध करता है, ऐसे अपराध के लिए उसका किसी भी स्थान पर विचारण किया जा सकेगा और उसे दंडित किया जा सकेगा ।
(2) ऐसे व्यक्ति, जिनके द्वारा किसी विचारण में अभियुक्त व्यक्ति की प्रतिरक्षा की जा सकेगी और उसमें ऐसे व्यक्तियों की हाजिरी, विहित रूप में हो सकेगी ।
92. दंड न्यायालय और बल न्यायालय में से किसी एक का चयन- जब किसी अपराध के संबंध में दंड न्यायालय और बल न्यायालय में से प्रत्येक को अधिकारिता है तब यह विनिश्चय करना कि कार्यवाहियां किस न्यायालय के समक्ष संस्थित की जाएं , उस महानिदेशक , अपर महानिदेशक या महानिरीक्षक या उप महानिरीक्षक या अपर महानिरीक्षक के , जिसके समादेश में अभियुक्त व्यक्ति सेवा कर रहा है या ऐसे अन्य आफिसर के , जो विहित किया जाए , विवेकाधीन होगा और यदि वह आफिसर यह विनिश्चय करता है कि कार्यवाहियां बल न्यायालय के समक्ष संस्थित की जाएं तब वह निदेश देगा कि अभियुक्त व्यक्ति को बल अभिरक्षा में निरुद्ध किया जाए , उसके विवेकाधीन होगा ।
93. दंड न्यायालय की यह अपेक्षा करने की शक्ति कि अपराधी परिदत्त किया जाए-(1) जब अधिकारिता रखने वाले दंड न्यायालय की यह राय है कि किसी अधिकथित अपराध के बारे में कार्यवाहियां उसी के समक्ष संस्थित की जानी चाहिएं तब वह, लिखित सूचना द्वारा, धारा 92 में निर्दिष्ट आफिसर से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह अपने विकल्प पर अपराध को विधि के अनुसार उसके विरुद्ध कार्यवाही किए जाने के लिए निकटतम मजिस्ट्रेट को परिदत्त कर दे या केन्द्रीय सरकार को निर्देश किए जाने तक कार्यवाहियों को मुल्तवी कर दे ।
(2) ऐसे प्रत्येक मामले में उक्त आफिसर या तो उस अध्यपेक्षा के अनुपालन में अपराधी को परिदत्त कर देगा या इस प्रश्न को कि कार्यवाहियां किस न्यायालय के समक्ष संस्थित की जानी हैं, केन्द्रीय सरकार के अवधारण के लिए तत्काल निर्देशित करेगा जिसका ऐसे निर्देश पर आदेश अंतिम होगा ।
अध्याय 8
बल न्यायालयों की प्रक्रिया
94. पीठासीन आफिसर- प्रत्येक जनरल बल न्यायालय या पैटी बल न्यायालय में ज्येष्ठ सदस्य पीठासीन आफिसर होगा ।
95. जज अटर्नी-(1) जज अटर्नी या उप जज अटर्नी जनरल या अपर जज अटर्नी जनरल या यदि ऐसा कोई आफिसर उपलब्ध नहीं है तो ऐसा कोई आफिसर, जो जज अटर्नी जनरल या ऐसे जज अटर्नी जनरल द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी आफिसर द्वारा अनुमोदित किया जाए, प्रत्येक जनरल बल न्यायालय में हाजिर रहेगा और प्रत्येक पैटी बल न्यायालय में हाजिर रह सकेगा ।
(2) जज अटर्नी जनरल , अपर जज अटर्नी जनरल , उप जज अटर्नी जनरल और जज अटर्नी की भर्ती और सेवा की शर्तें यथा विहित होंगी ।
96. आक्षेप-(1) जनरल बल न्यायालय या पैटी बल न्यायालय द्वारा सभी विचारणों में , जैसे ही न्यायालय समवेत हो वैसे ही , पीठासीन आफिसर और सदस्यों के नाम अभियुक्त को पढ़कर सुनाए जाएंगे और तब उससे यह पूछा जाएगा कि क्या वह न्यायालयासीन किसी आफिसर द्वारा अपना विचारण किए जाने पर आक्षेप करता है ।
(2) यदि अभियुक्त ऐसे किसी आफिसर के बारे में आक्षेप करता है , तो उसका आक्षेप और उस पर उस आफिसर का , जिसके बारे में आक्षेप किया गया है , उत्तर भी सुना और अभिलिखित किया जाएगा और न्यायालय के बाकी आफिसर उस आक्षेप पर उस अधिकारी की अनुपस्थिति में , जिसके बारे में आक्षेप किया गया है , विनिश्चय करेंगे ।
(3) यदि आक्षेप को मतदान करने के हकदार आफिसरों में से आधे या उससे अधिक आफिसरों के मतों द्वारा अनुज्ञात कर दिया जाता है तो आक्षेप को अनुज्ञात किया जाएगा और वह सदस्य जिसके बारे में आक्षेप किया गया है, निवृत्त हो जाएगा और उस रिक्ति को विहित रीति से किसी अन्य आफिसर से इस शर्त के अधीन रहते हुए भरा जाएगा कि अभियुक्त को उसके बारे में भी आक्षेप करने का वही अधिकार होगा ।
(4) जब कोई आक्षेप नहीं किया गया है या जब आक्षेप किया गया है और वह अननुज्ञात कर दिया गया है या किसी आफिसर की रिक्ति उपधारा (3) के अधीन ऐसे आफिसर से भर दी गई है जिसके प्रति कोई आक्षेप नहीं किया गया है या अनुज्ञात नहीं किया गया है, तब न्यायालय विचारण के लिए अग्रसर होगा ।
97. सदस्यों, जज अटर्नी और साक्षियों को शपथ दिलाना-(1) इसके पूर्व कि विचारण प्रारंभ हो, बल न्यायालय के प्रत्येक सदस्य को और, यथास्थिति, जज अटर्नी या उप जज अटर्नी या अपर जज अटर्नी जनरल या धारा 95 के अधीन अनुमोदित आफिसर को विहित रीति से शपथ दिलाई जाएगी या उससे प्रतिज्ञान कराया जाएगा ।
(2) बल न्यायालय के समक्ष साक्ष्य देने वाले प्रत्येक व्यक्ति की परीक्षा विहित प्ररूप में सम्यक् रूप से उसे शपथ दिलाने या उससे प्रतिज्ञान कराने के पश्चात् की जाएगी ।
(3) उपधारा (2) के उपबंध वहां लागू नहीं होंगे जहां साक्षी बारह वर्ष से कम आयु का बालक है और बल न्यायालय की यह राय है कि यद्यपि साक्षी सत्य बोलने के कर्तव्य को समझता है तथापि वह शपथ या प्रतिज्ञान की प्रकृति को नहीं समझता ।
98. सदस्यों द्वारा मतदान-(1) उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए बल न्यायालय का प्रत्येक विनिश्चय स्पष्ट बहुमत से पारित किया जाएगा और जहां निष्कर्ष या दंडादेश के बारे में मत बराबर हैं वहां विनिश्चय अभियुक्त के पक्ष में होगा ।
(2) जनरल बल न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश उस न्यायालय के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों की सहमति के बिना पारित नहीं किया जाएगा ।
(3) आक्षेप या निष्कर्ष या दंडादेश के मामलों से भिन्न मामलों में पीठासीन आफिसर का निर्णायक मत देने का अधिकार होगा ।
99. साक्ष्य के बारे में साधारण नियम-भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, बल न्यायालय के समक्ष की सभी कार्यवाहियों को लागू होगा ।
100. न्यायिक अवेक्षा-बल न्यायालय किसी ऐसी बात की न्यायिक अवेक्षा कर सकेगा जो बल के आफिसरों के रूप में सदस्यों के साधारण ज्ञान में होती है ।
101. साक्षियों को समन करना-(1) संयोजक आफिसर या बल न्यायालय का पीठासीन आफिसर या जज अटर्नी या, यथास्थिति, उप जज अटर्नी जनरल या अपर जज अटर्नी जनरल या धारा 95 के अधीन अनुमोदित आफिसर या अभियुक्त व्यक्ति का कमान आफिसर स्वहस्ताक्षरित समन द्वारा किसी व्यक्ति की, साक्ष्य देने के लिए या कोई दस्तावेज या अन्य वस्तु पेश करने के लिए ऐसे समय और स्थान पर जो समन में वर्णित किया जाए, हाजिरी की अपेक्षा कर सकेगा ।
(2) ऐसे साक्षी की दशा में , जो इस अधिनियम के या संघ के सशस्त्र बलों से संबंधित किसी अन्य अधिनियम के अधीन है , समन उसके कमान आफिसर को भेजा जाएगा और वह आफिसर उस समन की उस पर तद्नुसार तामील करेगा ।
(3) किसी अन्य साक्षी की दशा में , समन उस मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा जिसकी अधिकारिता के भीतर वह है या निवास करता है और वह मजिस्ट्रेट समन को ऐसे कार्यान्वित करेगा मानो साक्षी से उस मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आने की अपेक्षा की गई हो ।
(4) जब किसी साक्षी से उसके कब्जे या शक्ति में की किसी विशिष्ट दस्तावेज या अन्य वस्तु को पेश करने की अपेक्षा की जाती है तब समन में युक्तियुक्त प्रमितता के साथ उसका वर्णन किया जाएगा ।
102. पेश किए जाने से छूट प्राप्त दस्तावेज-(1) धारा 101 की कोई भी बात भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 के प्रवर्तन पर प्रभाव डालने वाली अथवा डाक या तार प्राधिकारियों की अभिरक्षा में के किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज को लागू होने वाली नहीं समझी जाएगी ।
(2) यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय की राय में ऐसी अभिरक्षा में किसी दस्तावेज की किसी बल न्यायालय प्रयोजन के लिए आवश्यकता है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारियों से अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसी दस्तावेज किसी ऐसे व्यक्ति को परिदत्त करें, जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय निर्दिष्ट करे ।
(3) यदि किसी अन्य मजिस्ट्रेट की या किसी पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक की राय में किसी ऐसी दस्तावेज की ऐसे ही किसी प्रयोजन के लिए आवश्यकता है, तो वह, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारियों से अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसी दस्तावेज की तलाश कराए और उसे ऐसे किसी जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय के आदेश होने तक प्रतिधृत रखे ।
103. साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन-(1) जब कभी बल न्यायालय द्वारा किए जा रहे विचारण के अनुक्रम में, न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि साक्षी की परीक्षा की जाए और ऐसे साक्षी की हाजिरी इतने विलम्ब, व्यय या असुविधा के बिना, जितना मामले की परिस्थितियों में अनुचित होगा, नहीं कराई जा सकती है तब ऐसे न्यायालय, जज अटर्नी जनरल को इस वास्ते संबोधित कर सकेगा कि उस साक्षी का साक्ष्य लेने के लिए कमीशन जारी किया जाए ।
(2) यदि जज अटर्नी जनरल आवश्यक समझता है तो वह साक्ष्य लेने के लिए किसी ऐसे महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के नाम, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह साक्षी निवास करता है, कमीशन निकाल सकेगा ।
(3) वह मजिस्ट्रेट, जिसके नाम कमीशन निकाला गया है या, यदि वह मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है या ऐसा महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे तो, वह साक्षी को अपने समक्ष आने के लिए समन करेगा या उस स्थान पर जाएगा जहां साक्षी है और उसी रीति से उसका साक्ष्य लिखेगा और इस प्रयोजन के लिए उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, जो उसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन वारन्ट मामलों के विचारण के लिए है ।
(4) जब साक्षी किसी जनजाति क्षेत्र में या भारत से बाहर किसी स्थान पर निवास करता है, तब कमीशन उस रीति से निकाला जा सकेगा, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 23 में विनिर्दिष्ट है ।
104. साक्षी की कमीशन पर परीक्षा-(1) किसी ऐसे मामले में, जिसमें धारा 103 के अधीन कमीशन निकाला गया है, अभियोजक और अभियुक्त व्यक्ति कोई ऐसे लिखित परिप्रश्न भेज सकेंगे, जिन्हें न्यायालय विवाद्यक से सुसंगत समझे और ऐसे कमीशन का निष्पादन करने वाला मजिस्ट्रेट ऐसे परिप्रश्नों पर साक्षी की परीक्षा करेगा ।
(2) अभियोजक और अभियुक्त व्यक्ति , ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष काउंसेल की मार्फत या उस दशा के सिवाय जब अभियुक्त व्यक्ति अभिरक्षा में है , स्वयं उपसंजात हो सकेंगे और उक्त साक्षी की , यथास्थिति , परीक्षा , प्रतिपरीक्षा और पुनःपरीक्षा कर सकेंगे ।
(3) धारा 103 के अधीन निकाले गए कमीशन के सम्यक् रूप से निष्पादित किए जाने के पश्चात् उसे उस साक्षी के अभिसाक्ष्य सहित, जिसकी उसके अधीन परीक्षा की गई है, जज अटर्नी जनरल को लौटा दिया जाएगा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन लौटाए गए कमीशन और अभिसाक्ष्य की प्राप्ति पर, जज अटर्नी जनरल उसे उस न्यायालय को, जिसके निवेदन पर वह कमीशन निकाला गया था, यदि वह न्यायालय विघटित कर दिया गया है तो, अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के लिए संयोजित किसी अन्य न्यायालय को अग्रेषित करेगा और कमीशन तत्संबंधी विवरणों और अभिसाक्ष्य, अभियोजक और अभियुक्त द्वारा निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे और वे, सभी न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए, मामले में अभियोजक द्वारा या अभियुक्त द्वारा साक्ष्य में पढ़े जा सकेंगे और न्यायालय की कार्यवाही के भाग होंगे ।
(5) ऐसे प्रत्येक मामले में, जिसमें धारा 103 के अधीन कमीशन निकाला गया है, विचारण ऐसे विनिर्दिष्ट समय के लिए स्थगित किया जा सकेगा जो कमीशन के निष्पादन और लौटाए जाने के लिए उचित रूप से पर्याप्त हो ।
105. ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्धि, जिसका आरोप न लगाया गया हो- वह व्यक्ति , जिस पर बल न्यायालय के समक्ष , -
(क) अभित्यजन का आरोप लगाया गया है, अभित्यजन करने का प्रयत्न करने या छुट्टी बिना अनुपस्थित होने का दोषी ठहराया जा सकेगा;
( ख ) अभित्यजन करने का प्रयत्न करने का आरोप लगाया गया है , छुट्टी बिना अनुपस्थित होने का दोषी ठहराया जा सकेगा ;
(ग) आपराधिक बल का प्रयोग करने का आरोप लगाया गया है, हमले का दोषी ठहराया जा सकेगा;
( घ ) धमकी भरी भाषा का प्रयोग करने का आरोप लगाया गया है , अनधीनता द्योतक भाषा का प्रयोग करने का दोषी ठहराया जा सकेगा ;
(ङ) धारा 33 के खंड (क), खंड (ख), खंड (ग) और खंड (घ) में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी एक का आरोप लगाया गया है, इन अपराधों में से किसी ऐसे अन्य अपराध का दोषी ठहराया जा सकेगा, जिसका उस पर आरोप लगाया जा सकता था;
( च ) धारा 49 के अधीन दंडनीय किसी अपराध का आरोप लगाया है किसी ऐसे अन्य अपराध का दोषी ठहराया जा सकेगा , जिसका वह उस दशा में दोषी ठहराया जा सकता था जब दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 (1974 का 2) के उपबंध लागू होते ;
(छ) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप लगाया गया है, अपराध के ऐसी परिस्थितियों में किए जाने का जिनमें अधिक कठोर दंड अन्तर्वलित है सबूत न होने पर उसी अपराध के ऐसी परिस्थितियों में, जिनमें कम कठोर दंड अंतर्वलित हैं, किए जाने का दोषी ठहराया जा सकेगा;
(ज) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप लगाया गया है, उस अपराध के प्रयत्न का या दुष्प्रेरण का दोषी ठहराया जा सकेगा, भले ही प्रयत्न या दुष्प्रेरण का आरोप पृथक्तः न लगाया गया हो ।
106. हस्ताक्षरों के बारे में उपधारणा-इस अधिनियम के अधीन किसी भी कार्यवाही में ऐसे किसी आवेदन, प्रमाणपत्र, वारंट, उत्तर या अन्य दस्तावेज के बारे में जिसका सरकार की सेवा में के किसी आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, पेश किए जाने पर जब तक यह तत्प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, यह उपधारणा की जाएगी कि वह उस व्यक्ति द्वारा और उस हैसियत में सम्यक् रूप से हस्ताक्षरित की गई है, जिसके द्वारा और जिस हैसियत में उसका हस्ताक्षरित किया जाना तात्पर्यित है ।
107. अभ्यावेशन पत्र-(1) कोई अभ्यावेशन पत्र, जिसका किसी अभ्यावेशन आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, इस अधिनियम के अधीन कार्यवाहियों में इस बात का साक्ष्य होगा कि अभ्यावेशित व्यक्ति ने प्रश्नों के वही उत्तर दिए थे, जिनका उसके द्वारा जाना उसमें व्यपदिष्ट है ।
(2) ऐसे व्यक्ति का अभ्यावेशन, उसके मूल अभ्यावेशन पत्र या उसकी ऐसी प्रतिलिपि, जिसका अभ्यावेशन पत्र या सेवा अभिलेख को अभिरक्षा में रखने वाले आफिसर द्वारा शुद्ध प्रतिलिपि के रूप में प्रमाणित होना तात्पर्यित है, पेश करके साबित किया जा सकेगा ।
108. कुछ दस्तावेजों के बारे में उपधारणा-(1) बल के किसी यूनिट में किसी व्यक्ति के सेवा में होने या ऐसी यूनिट से किसी व्यक्ति की पदच्युति, हटाए जाने या उन्मोचन के संबंध में या किसी व्यक्ति की इन परिस्थितियों के बारे में कि उसने बल की किसी यूनिट में सेवा नहीं की है या वह उसका अंग नहीं है, कोई पत्र, विवरणी या अन्य दस्तावेज उस दशा में जिसमें उसका केन्द्रीय सरकार या महानिदेशक द्वारा या उसकी ओर से अथवा किसी विहित आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, उन तथ्यों का साक्ष्य होगा, जिनका कथन उस पत्र, विवरणी या अन्य दस्तावेज में है ।
(2) बल सूची या राजपत्र, जिसका प्राधिकार से प्रकाशित होना तात्पर्यित है, उसमें वर्णित आफिसरों और अधीनस्थ आफिसरों की प्रास्थिति और रैंक का तथा उनके द्वारा धारित किसी नियुक्ति का तथा बल की उस बटालियन, यूनिट या शाखा का, जिसके वे अंग हैं, साक्ष्य होगा ।
(3) जहां इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए, किन्हीं नियमों के अनुसरण में या अन्यथा शासकीय कर्तव्यों के निर्वहन में कोई अभिलेख किसी बटालियन पुस्तक में लेखबद्ध किया जाता है और कमान आफिसर द्वारा या उस आफिसर द्वारा, जिसका कर्तव्य ऐसा अभिलेख लेखबद्ध करना है, हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, वहां ऐसा अभिलेख उन तथ्यों का, जिनका उसमें कथन किया गया है, साक्ष्य होगा ।
(4) बल के किसी कार्यालय में किसी अभिलेख की प्रतिलिपि जिसका ऐसी पुस्तक को अभिरक्षा में रखने वाले आफिसर द्वारा शुद्ध प्रतिलिपि के रूप में प्रमाणित होना तात्पर्यित है, ऐसे अभिलेख का साक्ष्य होगी ।
(5) जहां किसी ऐसे व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है, अभित्यजन या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के आरोप पर विचारण किया जा रहा है, और ऐसे व्यक्ति ने किसी आफिसर या ऐसे अन्य व्यक्ति की, जो इस अधिनियम के अधीन है, या बल के किसी यूनिट की अभिरक्षा में अपने को अभ्यर्पित कर दिया है या वह ऐसे आफिसर या व्यक्ति द्वारा पकड़ लिया गया है, वहां ऐसे प्रमाणपत्र जिनका, यथास्थिति, ऐसे आफिसर द्वारा या उस यूनिट के, जिसका ऐसा व्यक्ति अंग है या उससे संलग्न है, कमान आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है और जिसमें ऐसे अभ्यर्पण या पकडे़ जाने का तथ्य, तारीख और स्थान तथा इस बात का कथन है कि उसका पहनावा कैसा था, ऐसी कथित बातों का साक्ष्य होगा ।
(6) जहां किसी ऐसे व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है, अभित्यजन का छुट्टी बिना अनुपस्थिति के आरोप पर विचारण किया जा रहा है और ऐसे व्यक्ति ने किसी ऐसे पुलिस आफिसर की, जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक आफिसर के रैंक से नीचे का नहीं है, अभिरक्षा में अपने को अभ्यर्पित कर दिया है या वह ऐसे आफिसर द्वारा पकड़ लिया गया है, वहां ऐसा प्रमाणपत्र जिसका ऐसे पुलिस आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है और जिसमें ऐसे अभ्यर्पण या पकड़े जाने का तथ्य, तारीख और स्थान तथा इस बात का कथन है कि जिसका पहनावा कैसा था, ऐसी कथित बातों का साक्ष्य होगा ।
(7) (क) किसी ऐसी दस्तावेज का, जिसका किसी ऐसे सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ द्वारा, जिसको यह उपधारा लागू होती है, हस्ताक्षरित ऐसी रिपोर्ट होना तात्यर्यित है, जो ऐसे पदार्थ या चीज के बारे में है, जो इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही के अनुक्रम में परीक्षा, विश्लेषण और रिपोर्ट के लिए उसे सम्यक् रूप से भेजी गई थी, इस अधिनियम के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा ।
(ख) यदि बल न्यायालय उचित समझता है तो वह ऐसे किसी विशेषज्ञ को उसकी रिपोर्ट की विषय-वस्तु के बारे में समन कर सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा ।
(ग) जहां बल न्यायालय द्वारा ऐसा विशेषज्ञ समन किया जाता है और वह न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने में असमर्थ है तो जब तक न्यायालय उसे व्यक्तिगत रूप में हाजिर होने के लिए अभिव्यक्ततः निदेश न दे वह ऐसे किसी आफिसर को, जो मामले में तथ्यों से अवगत है, अपनी ओर से न्यायालय में अभिसाक्ष्य देने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकेगा ।
(घ) यह उपधारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 293 की उपधारा (4) में तत्समय विनिर्दिष्ट सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों को लागू होती है ।
109. अभियुक्त द्वारा सरकारी आफिसर को निर्देश-(1) यदि अभित्यजन के या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के, छुट्टी के उपरांत अनुपस्थिति के या सेवा के लिए बुलाए जाने पर वापस न आने के लिए किए जा रहे किसी विचारण में अभियुक्त व्यक्ति अपनी अप्राधिकृत अनुपस्थिति के लिए किसी पर्याप्त या युक्तियुक्त प्रतिहेतु का कथन अपनी प्रतिरक्षा में करता है और उसके समर्थन में सरकार की सेवा में के किसी आफिसर के प्रति निर्देश करता है या यदि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिरक्षा में के उक्त कथन के किसी ऐसे आफिसर द्वारा साबित या नासाबित किए जाने की संभावना है तो न्यायालय ऐसे आफिसर को लिखेगा और कार्यवाहियों को तब तक के लिए स्थगित कर देगा जब तक उसका उत्तर प्राप्त नहीं हो जाता ।
(2) ऐसे निर्देशित आफिसर का लिखित उत्तर, यदि वह उसके द्वारा हस्ताक्षरित है, तो, साक्ष्य में लिया जाएगा और उसका वैसा ही प्रभाव होगा मानो वह न्यायालय के समक्ष शपथ पर किया गया हो ।
(3) यदि ऐसे उत्तर की प्राप्ति के पूर्व न्यायालय का विघटन हो जाता है अथवा यदि न्यायालय इस धारा के उपबंधों का पालन करने का लोप करता है तो संयोजक आफिसर कार्यवाहियों को स्वविवेकानुसार बातिल कर सकेगा और नए विचारण का आदेश दे सकेगा ।
110. पूर्व दोषसिद्धियों और साधारण आचरण का साक्ष्य-(1) जब किसी ऐसे व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है, बल न्यायालय ने किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया है तब वह बल न्यायालय ऐसे व्यक्ति की किसी बल न्यायालय या दंड न्यायालय द्वारा की गई पूर्व दोषसिद्धियों की धारा 56 या धारा 58 के अधीन किए गए किसी पूर्व दंड अधिनिर्णय की जांच कर सकेगा तथा उसका साक्ष्य प्राप्त और लेखबद्ध कर सकेगा तथा इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति के साधारण शील या आचरण की और ऐसी बातों की, जो विहित की जाए, जांच कर सकेगा और उन्हें लेखबद्ध कर सकेगा ।
(2) इस धारा के अधीन प्राप्त किया गया साक्ष्य, मौखिक या बल न्यायालय की पुस्तकों या अन्य शासकीय अभिलेखों की प्रविष्टियों के रूप में या उनमें से प्रमाणित उद्धरणों के रूप में हो सकेगा और ऐसे व्यक्ति को, जिसका विचारण किया गया है, विचारण के पूर्व यह सूचना देना आवश्यक नहीं होगा कि उसकी पूर्व दोषसिद्धियों या शील के बारे में साक्ष्य प्राप्त किया जाएगा ।
(3) यदि समरी बल न्यायालय में विचारण करने वाला आफिसर ठीक समझता है तो वह अपराधी के विरुद्ध की गई किन्हीं पूर्व दोषसिद्धियों को , उसके साधारण शील को और ऐसी अन्य बातों को , जो विहित की जाएं , इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन साबित किए जाने की अपेक्षा करने के बदले अपने ज्ञान के रूप में अभिलिखित कर सकेगा ।
111. अभियुक्त का पागलपन-(1) जब कभी बल न्यायालय द्वारा विचारण के दौरान न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह व्यक्ति, जिस पर आरोप है, चित्त-विकृति के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है या उसने अभिकथित कार्य किया तो था किन्तु वह चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति को जानने में या यह जानने में कि वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, असमर्थ था, तब न्यायालय तद्नुसार निष्कर्ष लेखबद्ध करेगा ।
(2) न्यायालय का पीठासीन आफिसर या समरी बल न्यायालय की दशा में, विचारण करने वाला आफिसर मामले की रिपोर्ट, यथास्थिति, पुष्टिकर्ता आफिसर को या उस प्राधिकारी को तत्काल करेगा जो उसके निष्कर्ष पर धारा 129 के अधीन कार्यवाही करने के लिए सशक्त है ।
(3) यदि पुष्टिकर्ता आफिसर जिसको मामले की रिपोर्ट उपधारा (2) के अधीन की जाती है, निष्कर्ष की पुष्टि नहीं करता है तो वह अभियुक्त व्यक्ति का, ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप लगाया गया था, विचारण उसी या किसी अन्य बल न्यायालय द्वारा कराने के लिए कार्यवाही कर सकेगा ।
(4) वह प्राधिकारी , जिसको समरी बल न्यायालय के निष्कर्ष की रिपोर्ट उपधारा (2) के अधीन की जाती है और पुष्टिकर्ता आफिसर जो ऐसे मामले में , जिसकी रिपोर्ट उसको की गई है , निष्कर्ष की पुष्टि करता है , अभियुक्त व्यक्ति को विहित रीति से अभिरक्षा में रखे जाने का आदेश देगा तथा मामले की रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार के आदेशों के लिए करेगा ।
(5) उपधारा (4) के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर, केन्द्रीय सरकार अभियुक्त व्यक्ति को किसी पागलखाने में या सुरक्षित अभिरक्षा के अन्य उपयुक्त स्थान में निरुद्ध किए जाने का आदेश दे सकेगी ।
112. पागल अभियुक्त का आगे चल कर विचारण के लिए उपयुक्त हो जाना-जहां कोई अभियुक्त व्यक्ति चित्त-विकृति के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाए जाने पर, धारा 111 के अधीन अभिरक्षा या निरोध में है, वहां इस निमित्त विहित कोई आफिसर-
(क) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 111 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है तो किसी चिकित्सीय आफिसर की इस रिपोर्ट पर कि वह अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है, या
(ख) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 111 की उपधारा (5) के अधीन किसी जेल में निरुद्ध है तो कारागार महानिरीक्षक के इस प्रमाणपत्र पर और यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा के अधीन किसी पागलखाने में निरुद्ध है तो उस पागलखाने के किन्हीं दो या अधिक परिदर्शकों के इस प्रमाणपत्र पर और यदि उस उपधारा के अधीन वह किसी अन्य स्थान में निरुद्ध है तो विहित प्राधिकारी के इस प्रमाणपत्र पर कि वह अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है ,
उस व्यक्ति का विचारण उस अपराध के लिए , जिसका आरोप उस पर मूलतः लगाया गया था , उसी या किसी अन्य बल न्यायालय द्वारा या यदि अपराध सिविल अपराध है तो दंड न्यायालय द्वारा कराने के लिए कार्रवाई कर सकेगा ।
113. धारा 112 के अधीन आदेशों का केन्द्रीय सरकार को पारेषण-अभियुक्त के विचारण के लिए किसी आफिसर द्वारा धारा 112 के अधीन किए गए प्रत्येक आदेश की एक प्रतिलिपि केन्द्रीय सरकार को तत्काल भेजी जाएगी ।
114. पागल अभियुक्त की निर्मुक्ति-जहां कोई व्यक्ति धारा 111 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है या उस धारा की उपधारा (5) के अधीन निरोध में है वहां, -
( क ) यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है , किसी चिकित्सीय आफिसर की ऐसी रिपोर्ट पर ; या
(ख) यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा (5) के अधीन निरोध में है तो धारा 112 के खंड (ख) में वर्णित किसी प्राधिकारी के ऐसे प्रमाणपत्र पर कि उस आफिसर या प्राधिकारी के विचार में ऐसे व्यक्ति की निर्मुक्ति उसके स्वयं अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के संकट के बिना की जा सकती है,
केन्द्रीय सरकार यह आदेश दे सकेगी कि ऐसे व्यक्ति को निर्मुक्त कर दिया जाए या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाए या यदि उसे पहले ही किसी ऐसे लोक पागलखाने में नहीं भेज दिया गया है तो उसे ऐसे लोक पागलखाने में अंतरित कर दिया जाए ।
115. पागल अभियुक्त का उसके नातेदारों को परिदत्त किया जाना-जहां ऐसे व्यक्ति का, जो धारा 111 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है या उस धारा की उपधारा (5) के अधीन निरोध में है, कोई नातेदार या मित्र यह चाहता है कि उसे उसकी देखरेख और अभिरक्षा में रखे जाने के लिए परिदत्त कर दिया जाए वहां केन्द्रीय सरकार ऐसे नातेदार या मित्र के आवेदन पर और उस सरकार को समाधानप्रद रूप में ऐसी प्रतिभूति उसके द्वारा दिए जाने पर कि परिदत्त व्यक्ति की समुचित देखरेख की जाएगी और उसे स्वयं अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति करने से निवारित किया जाएगा, तथा परिदत्त व्यक्ति को ऐसे आफिसर के समक्ष और ऐसे समयों पर और स्थानों पर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं, निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा, ऐसे व्यक्ति को ऐसे नातेदार या मित्र को परिदत्त किए जाने का आदेश दे सकेगी ।
116. विचारण के लंबित रहने तक संपत्ति की अभिरक्षा और व्ययन के लिए आदेश-जब कोई संपत्ति, जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो कोई अपराध करने के लिए उपयोग में लाई गई प्रतीत होती है, किसी बल न्यायालय के समक्ष विचारण के दौरान पेश की जाती है तब न्यायालय विचारण की समाप्ति तक ऐसी संपत्ति की उचित अभिरक्षा के लिए ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे और यदि संपत्ति शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील है तो, ऐसा साक्ष्य जो वह आवश्यक समझे, लेखबद्ध करने के पश्चात् उसका विक्रय करने या अन्यथा व्ययनित करने का आदेश दे सकेगा ।
117. जिस संपत्ति के बारे में अपराध किया गया है उसके व्ययन के लिए आदेश-(1) किसी बल न्यायालय के समक्ष विचारण की समाप्ति के पश्चात्, वह न्यायालय या उस बल न्यायालय के निष्कर्ष या दंडादेश की पुष्टि करने वाला आफिसर या ऐसे आफिसर से वरिष्ठ कोई प्राधिकारी या, ऐसे समरी बल न्यायालय की दशा में, जिसके निष्कर्ष या दंडादेश की पुष्टि अपेक्षित नहीं है, ऐसा आफिसर जो उस अपर उप महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है जिसके समादेश के अधीन विचारण किया गया था, ऐसी किसी संपत्ति या उस दस्तावेज को, जो उस न्यायालय के समक्ष पेश की गई है या उसकी अभिरक्षा में है या जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो कोई अपराध करने के लिए प्रयुक्त की गई है, नष्ट करके, अधिहरण करके, ऐसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करके जो उसके कब्जे का हकदार होने का दावा करता है या अन्यथा व्ययनित करने के लिए ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश ऐसी संपत्ति के बारे में किया गया है, जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है वहां आदेश करने वाले प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित और प्रमाणित उस आदेश की प्रति, चाहे विचारण भारत के भीतर हुआ हो या नहीं, ऐसे मजिस्ट्रेट को भेजी जा सकेगी, जिसकी अधिकारिता में वह संपत्ति उस समय स्थित है और तब वह मजिस्ट्रेट उस आदेश को ऐसे कार्यान्वित कराएगा मानो वह उसके द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंधों के अधीन पारित आदेश हो ।
(3) इस धारा में, संपत्ति" शब्द के अंतर्गत, उस संपत्ति की दशा में जिसके बारे में अपराध किया गया प्रतीत होता है, न केवल वह संपत्ति आती है जो मूलतः किसी व्यक्ति के कब्जे में या नियंत्रण में रही है बल्कि वह संपत्ति भी आती है जिसमें या जिसके बदले में उसका संपरिवर्तन या विनिमय किया गया है, और वह सब कुछ आता है जो ऐसे संपरिवर्तन या विनिमय द्वारा तुरंत या अन्यथा अर्जित किया गया है ।
118. इस अधिनियम के अधीन कार्यवाहियों के संबंध में बल न्यायालय की शक्तियां-बल न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन किया गया कोई विचारण, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ के भीतर न्यायिक कार्यवाही समझा जाएगा और बल न्यायालय को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 345 और धारा 346 के अर्थ के भीतर न्यायालय समझा जाएगा ।
119. सह-अपराधी को क्षमादान -(1) किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से , जिसके बारे में यह अनुमान है कि इस अधिनियम के अधीन वह समरी बल न्यायालय से भिन्न किसी बल न्यायालय द्वारा विचारणीय किसी अपराध से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबद्ध है या संसर्गी है , कमान आफिसर , संयोजक आफिसर या बल न्यायालय अपराध के अन्वेषण या जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में ऐसे व्यक्ति को इस शर्त पर क्षमादान कर सकेगा कि वह अपराध के संबंध में और उसके किए जाने में चाहे कर्ता या दुष्प्रेरक के रूप में संबंधित प्रत्येक व्यक्ति के संबंध में ऐसी सभी परिस्थितियों का , जिनकी उसे जानकारी हो , पूर्ण और सत्य प्रकटन कर दे ।
(2) कमान आफिसर या संयोजक आफिसर, जो उपधारा (1) के अधीन क्षमादान करता है, -
(क) ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा;
(ख) यह लेखबद्ध करेगा कि क्या क्षमादान उस व्यक्ति द्वारा, जिसको वह किया गया था, स्वीकार कर लिया गया था या नहीं, और अभियुक्त द्वारा आवेदन किए जाने पर उसे ऐसे अभिलेख की एक प्रति निःशुल्क देगा ।
(3) उपधारा (1) के अधीन किए गए क्षमादान को स्वीकार करने वाले-
( क ) प्रत्येक व्यक्ति की अभियुक्त के कमान आफिसर द्वारा और पश्चात्वर्ती विचारण में , यदि कोई हो , साक्षी के रूप में परीक्षा की जाएगी :
(ख) प्रत्येक व्यक्ति को विचारण खत्म होने तक बल अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जा सकेगा ।
120. क्षमादान की शर्तों का अनुपालन न करने वाले व्यक्ति का विचारण-(1) जहां, किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में, जिसने धारा 119 के अधीन किए गए क्षमादान को स्वीकार कर लिया है, यथास्थिति, जज अटर्नी जनरल या उप जज अटर्नी जनरल या अपर जज अटर्नी जनरल या धारा 95 के अधीन अनुमोदित आफिसर यह प्रमाणित करता है कि उसकी राय में ऐसे व्यक्ति ने किसी आवश्यक बात को जानबूझकर छिपाकर या मिथ्या साक्ष्य देकर उन शर्तों का अनुपालन नहीं किया है, जिन पर क्षमादान किया गया था, वहां ऐसे व्यक्ति का, उस अपराध के लिए, जिसके संबंध में इस प्रकार क्षमादान किया गया था या किसी ऐसे अन्य अपराध के लिए, जिसका वह उसी मामले के संबंध में दोषी प्रतीत होता है, और मिथ्या साक्ष्य देने के अपराध के लिए भी विचारण किया जा सकेगा :
परंतु किसी ऐसे व्यक्ति का विचारण किसी भी अन्य अभियुक्त के साथ संयुक्त रूप से नहीं किया जाएगा ।
(2) क्षमादान स्वीकार करने वाले ऐसे व्यक्ति द्वारा किए गए और उसके कमान आफिसर द्वारा या बल न्यायालय द्वारा लेखबद्ध किए गए किसी कथन को ऐसे विचारण में उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिया जा सकेगा ।
(3) ऐसे विचारण में, अभियुक्त यह अभिवचन करने का हकदार होगा कि उसने उन शर्तों का अनुपालन कर दिया है, जिन पर उसे ऐसा क्षमादान किया गया था, और तब यह साबित करना अभियोजन का काम होगा कि शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया है ।
(4) ऐसे विचारण के समय बल न्यायालय, दोषारोपण के पूर्व, अभियुक्त से पूछेगा कि क्या वह यह अभिवाक् करता है कि उसने उन शर्तों का अनुपालन किया है, जिन पर क्षमादान किया गया था ।
(5) यदि अभियुक्त इस प्रकार अभिवचन करता है तो न्यायालय उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और विचारण के लिए अग्रसर होगा तथा वह आरोप पर अपने निष्कर्ष देने के पूर्व, यह निष्कर्ष निकालेगा कि अभियुक्त ने क्षमा की शर्तों का अनुपालन किया है या नहीं और यदि वह यह निष्कर्ष निकालता है कि उसने ऐसा अनुपालन किया है तो वह दोषी न होने का अधिमत देगा ।
अध्याय 9
कार्यवाहियों की पुष्टि और पुनरीक्षण
121. निष्कर्ष और दंडादेश तभी विधिमान्य होगा जब उसकी पुष्टि कर दी जाए-किसी जनरल बल न्यायालय या पैटी बल न्यायालय का कोई भी निष्कर्ष या दंडादेश वहां तक ही विधिमान्य होगा, जहां तक कि वह इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार पुष्ट कर दिया जाता है ।
122. जनरल बल न्यायालय के निष्कर्ष और दंडादेश की पुष्टि करने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार या कोई ऐसा आफिसर, जो केन्द्रीय सरकार के अधिपत्र द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया है, जनरल बल न्यायालयों के निष्कर्षों और दंडादेशों की पुष्टि कर सकेगा ।
123. पैटी बल न्यायालय के निष्कर्ष और दंडादेश की पुष्टि करने की शक्ति-जनरल बल न्यायालय को संयोजित करने की शक्ति रखने वाला आफिसर या कोई ऐसा आफिसर जो ऐसे आफिसर के अधिपत्र द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया है, पैटी बल न्यायालयों के निष्कर्षों और दंडादेशों की पुष्टि कर सकेगा ।
124. पुष्टिकर्ता प्राधिकारी की शक्तियों की परिसीमा-धारा 122 या धारा 123 के अधीन निकाले गए अधिपत्र में ऐसे निर्बंधन, प्रतिबंध या शर्तें हो सकेंगी, जिन्हें उसे निकालने वाला प्राधिकारी ठीक समझे ।
125. दंडादेशों में कमी करने, उनका परिहार करने या उनका लघुकरण करने की पुष्टिकर्ता प्राधिकारी की शक्ति-ऐसे निर्बंधन, प्रतिबंधों या शर्तों के अधीन रहते हुए, जो धारा 122 या धारा 123 के अधीन निकाले गए किसी अधिपत्र में है, पुष्टिकर्ता प्राधिकारी किसी बल न्यायालय के दंडादेश की पुष्टि करते समय उस दंड में, जो उसके द्वारा अधिनिर्णीत किया गया है, कमी कर सकेगा या उसका परिहार कर सकेगा या उस दंड को धारा 51 में अधिकथित मापमान में के निम्नतर दंड या दंडों में लघुकृत कर सकेगा ।
126. पोत के फलक पर के निष्कर्षों और दंडादेशों का पुष्ट किया जाना-जब किसी व्यक्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन है, किसी बल न्यायालय द्वारा उस समय विचारण किया गया है और उसे दंडादिष्ट किया गया है जब कि वह किसी पोत के फलक पर है तब निष्कर्ष और दंडादेश, जहां तक कि पोत पर उसे पुष्ट और निष्पादित न किया गया हो, ऐसी रीति से पुष्ट और निष्पादित किया जा सकेगा मानो ऐसे व्यक्ति का विचारण उसके उतरने के पत्तन पर किया गया हो ।
127. निष्कर्ष या दंडादेश का पुनरीक्षण-(1) बल न्यायालय का निष्कर्ष या दंडादेश, जिसकी पुष्टि अपेक्षित है, पुष्टिकर्ता आफिसर के आदेश से एक बार पुनरीक्षित किया जा सकेगा और ऐसे पुनरीक्षण पर न्यायालय, यदि वह पुष्टिकर्ता आफिसर द्वारा ऐसा करने के लिए निदेशित किया गया है तो, अतिरिक्त साक्ष्य ले सकेगा ।
(2) पुनरीक्षण पर, न्यायालय उन्हीं आफिसरों से, जो उस समय उपस्थित थे जब मूल विनिश्चय पारित किया गया था, मिलकर गठित होगा जब तक कि उन आफिसरों में से कोई अपरिवर्जनीय रूप से अनुपस्थित न हो ।
(3) ऐसी अपरिवर्जनीय अनुपस्थिति की दशा में उसका हेतुक कार्यवाहियों में सम्यक् रूप से प्रमाणित किया जाएगा और न्यायालय पुनरीक्षण करने के लिए अग्रसर होगा, परंतु साधारण बल न्यायालय की दशा में यह पांच आफिसरों से और पैटी बल न्यायालय की दशा में, तीन आफिसरों से मिलकर, गठित होगा ।
128. समरी बल न्यायालय का निष्कर्ष और दंडादेश-समरी बल न्यायालय के निष्कर्ष और दंडादेश की पुष्टि अपेक्षित नहीं होगी, किन्तु उसे तत्काल कार्यान्वित किया जा सकेगा ।
129. समरी बल न्यायालय की कार्यवाहियों का पारेषण-प्रत्येक समरी बल न्यायालय की कार्यवाहियां उस आफिसर को, जो उस अपर उपमहानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है जिसके समादेश के अधीन विचारण किया गया था, या विहित आफिसर को अविलंब भेजी जाएंगी और ऐसा आफिसर या महानिदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई आफिसर, मामले के गुणागुण पर आधारित कारणों से, न कि केवल तकनीकी आधारों पर कार्यवाहियों को अपास्त कर सकेगा या उस दंडादेश को किसी अन्य ऐसे दंडादेश तक घटा सकेगा जो वह न्यायालय पारित कर सकता था ।
130. कुछ मामलों में निष्कर्ष या दंडादेश का परिवर्तित किया जाना -(1) जहां किसी बल न्यायालय द्वारा दोषी होने का ऐसा निष्कर्ष , जिसकी पुष्टि की जा चुकी है या जिसकी पुष्टि होनी अपेक्षित नहीं है , किसी कारण से अविधिमान्य पाया जाता है या साक्ष्य से उसका समर्थन नहीं होता है वहां वह प्राधिकारी जिसे , यदि निष्कर्ष विधिमान्य होता तो , दंडादेश द्वारा अधिनिर्णीत दंड को लघुकृत करने की शक्ति धारा 142 के अधीन होती , नया निष्कर्ष प्रतिस्थापित कर सकेगा और ऐसे निष्कर्ष में विनिर्दिष्ट या अन्तर्वलित अपराध के लिए दंडादेश पारित कर सकेगा :
परंतु ऐसा कोई प्रतिस्थापन तभी किया जाएगा जब बल न्यायालय द्वारा उस आरोप पर ऐसा निष्कर्ष विधिमान्यतया दिया जा सकता था और जब यह प्रतीत हो कि उक्त अपराध साबित करने वाले तथ्यों के बारे में बल न्यायालय का समाधान अवश्य हो गया है ।
(2) जहां बल न्यायालय द्वारा पारित ऐसा दंडादेश जिसकी पुष्टि की जा चुकी है या जिसकी पुष्टि होनी अपेक्षित नहीं है , किन्तु जो उपधारा (1) के अधीन प्रतिस्थापित नए निष्कर्ष के अनुसरण में पारित दंडादेश नहीं है , किसी कारण से अविधिमान्य पाया जाता है , वहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्राधिकारी विधिमान्य दंडादेश पारित कर सकेगा ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन पारित दंडादेश द्वारा अधिनिर्णीत दंड, दंडों के मापमान में उस दंड से उच्चतर नहीं होगा और न उस दंड से अधिक होगा जो उस दंडादेश द्वारा अधिनिर्णीत किया गया है, जिसके लिए इस धारा के अधीन नया दंडादेश प्रतिस्थापित किया गया है ।
(4) इस धारा के अधीन प्रतिस्थापित कोई निष्कर्ष या पारित कोई दंडादेश इस अधिनियम और नियमों के प्रयोजनों के लिए, ऐसे प्रभावी होगा मानो वह किसी बल न्यायालय का, यथास्थिति, निष्कर्ष या दंडादेश हो ।
131. बल न्यायालय के आदेश, निष्कर्ष या दंडादेश के विरुद्ध याचिका-(1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन है और जो किसी बल न्यायालय द्वारा पारित किसी आदेश से अपने को व्यथित समझता है, उस आफिसर या प्राधिकारी को, जो उस बल न्यायालय के किसी निष्कर्ष या दंडादेश की पुष्टि करने के लिए सशक्त किया गया है अर्जी दे सकेगा और पुष्टिकर्ता प्राधिकारी, पारित आदेश की शुद्धता, वैधता या औचित्य के बारे में या जिस कार्यवाही से वह आदेश संबद्ध है, उसकी नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के लिए ऐसी कार्यवाही कर सकेगा जो आवश्यक समझी जाए ।
(2) कोई व्यक्ति , जो इस अधिनियम के अधीन है और जो किसी बल न्यायालय के ऐसे निष्कर्ष या दंडादेश से , जिसकी पुष्टि की जा चुकी है , अपने को व्यथित समझता है , केन्द्रीय सरकार , महानिदेशक या समादेश में उस आफिसर से , जिसने उस निष्कर्ष या दंडादेश की पुष्टि की है , वरिष्ठ किसी विहित आफिसर को अर्जी दे सकेगा , और , यथास्थिति , केन्द्रीय सरकार , महानिदेशक या विहित आफिसर उस पर ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।
132. कार्यवाहियों का बातिल किया जाना-केन्द्रीय सरकार, महानिदेशक या कोई विहित आफिसर किसी बल न्यायालय की कार्यवाहियों को इस आधार पर बातिल कर सकेगा कि वे अवैध या अन्यायपूर्ण हैं ।
अध्याय 10
दंडादेशों का निष्पादन, क्षमा, परिहार, आदि
133. मृत्यु दंडादेश का निष्पादन-बल न्यायालय, मृत्यु दंडादेश का निष्पादन करने में स्वविवेकानुसार यह निदेश देगा कि अपराधी की मृत्यु ऐसे घटित की जाए कि जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए, जब तक उसे गर्दन में फांसी लगाकर लटकाए रखा जाए, या उसे गोली से मार दिया जाए ।
134. कारावास के दंडादेश का प्रारंभ-जब कभी कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन किसी बल न्यायालय द्वारा कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है तब उसके दंडादेश की अवधि, चाहे उसे पुनरीक्षित किया गया हो या नहीं, उस दिन प्रारंभ हुई मानी जाएगी जिस दिन मूल कार्यवाही पीठासीन आफिसर द्वारा या समरी बल न्यायालय की दशा में, उस न्यायालय द्वारा हस्ताक्षरित की गई थी:
परन्तु यदि, ऐसे किन्हीं कारणों से जो कमान आफिसर या वरिष्ठ आफिसर के नियंत्रण से बाहर हों, कारावास का दंडादेश पूर्णतः या भागतः निष्पादित नहीं किया जा सकता है तो सिद्धदोष व्यक्ति, यथास्थिति, दंडादेश का संपूर्ण या अनवसित भाग उस समय भोगने के दायित्व के अधीन होगा, जब उसे कार्यान्वित करना संभव हो:
परंतु यह और कि ऐसे मामले के , जिसमें उसे दंडादिष्ट किया जाता है , अन्वेषण , जांच या विचारण के दौरान और ऐसी तारीख के पूर्व , जिसको मूल कार्यवाहियों पर हस्ताक्षर किए गए थे , किसी अभियुक्त व्यक्ति द्वारा भोगे गए , यदि कोई हो , निरोध या परिरोध की अवधि का उसके दंडादेश की अवधि के विरुद्ध मंजूर किया जाएगा और ऐसे व्यक्ति का कारावास में जाने का दायित्व उसके दंडादेश की अवधि के शेष भाग तक , यदि कोई हो , निर्बन्धित किया जाएगा ।
135. कारावास के दंडादेश का निष्पादन-(1) जब किसी कारावास का कोई दंडादेश बल न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन पारित किया जाता है या जब कभी मृत्यु दंडादेश को कारावास में लघुकृत किया जाता है तब पुष्टिकर्ता आफिसर या समरी बल न्यायालय की दशा में न्यायालय अधिविष्ठ करने वाला आफिसर, या ऐसा अन्य आफिसर, जो विहित किया जाए, उपधारा (3) और उपधारा (4) में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, यह निदेश देगा कि दंडादेश किसी सिविल कारागार में परिरोध द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा ।
(2) जब कोई निर्देश उपधारा (1) के अधीन दिया गया है तब दंडादिष्ट व्यक्ति का कमान आफिसर या ऐसा अन्य आफिसर , जो विहित किया जाए उस कारागार के भारसाधक आफिसर को , जिसमें ऐसे व्यक्ति को परिरुद्ध किया जाना है , विहित प्ररूप में वारंट भेजेगा और वारंट के साथ उसे उस कारागार को भेजे जाने की व्यवस्था करेगा ।
(3) तीन मास से अनधिक की अवधि के कारावास के और बल न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन पारित कारावास के दंडादेश की दशा में, उपधारा (1) के अधीन समुचित आफिसर निदेश दे सकेगा कि दंडादेश किसी सिविल कारागार के बजाय बल अभिरक्षा में परिरोध करके कार्यान्वित किया जाए ।
(4) सक्रिय ड्यूटी की दशा में, कारावास का दंडादेश ऐसे स्थान में परिरोध करके कार्यान्वित किया जा सकेगा जिसे वह आफिसर जो अपर उप-महानिदेशक के रैंक से नीचे का नहीं है, जिसके समादेश के अधीन दंडादिष्ट व्यक्ति सेवारत है या कोई विहित आफिसर समय-समय पर नियत करे ।
136. सिद्धदोष व्यक्ति की अस्थायी अभिरक्षा-जहां यह निदेश दिया जाता है कि कारावास का दंडादेश सिविल कारागार में भोगा जाए वहां सिद्धदोष व्यक्ति को उस समय तक, जब तक कि उसे किसी सिविल कारागार में भेजना संभव नहीं है, बल अभिरक्षा में या किसी अन्य उचित स्थान में रखा जा सकेगा ।
137. विशेष मामलों में कारावास के दंडादेश का निष्पादन-जब कभी किसी ऐसे आफिसर की राय में, जो उस अपर उप-महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है, जिसके समादेश के अधीन विचारण किया गया है, कारावास का कोई दंडादेश या कारावास के दंडादेश का कोई भाग धारा 135 के उपबंधों के अनुसार बल अभिरक्षा में विशेष कारणों से सुविधापूर्वक कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है तब ऐसा आफिसर निदेश दे सकेगा कि वह दंडादेश या उस दंडादेश का वह भाग किसी सिविल कारागार या अन्य उचित स्थान में परिरोध करके कार्यान्वित किया जाए ।
138. कैदी का एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रवहण-जो व्यक्ति कारावास के दंडादेश के अधीन है, वह एक स्थान से दूसरे स्थान को अपने प्रवहण के दौरान या जब वह पोत या वायुयान के फलक पर या अन्यथा है, ऐसे अवरोध के अधीन होगा, जो उसके सुरक्षित रूप से ले जाए जाने और वहां से हटाए जाने के लिए आवश्यक है ।
139. कुछ आदेशों का कारागार आफिसरों को संसूचित किया जाना-जब कभी किसी ऐसे दंडादेश, आदेश या वारंट को, जिसके अधीन कोई व्यक्ति सिविल कारागार में परिरुद्ध है, अपास्त करने या उसमें फेरफार करने का कोई आदेश इस अधिनियम के अधीन सम्यक् रूप से किया जाता है, तब ऐसे आदेश के अनुसार एक वारंट ऐसा आदेश करने वाले आफिसर या उसके स्टाफ आफिसर या ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जो विहित किया जाए, उस कारागार के भारसाधक आफिसर को भेजा जाएगा, जिसमें वह व्यक्ति परिरुद्ध है ।
140. जुर्माने की वसूली-जब जुर्माने का दंडादेश बल न्यायालय द्वारा धारा 49 के अधीन अधिरोपित किया जाता है तब ऐसे दंडादेश की पुष्टिकर्ता आफिसर द्वारा या जहां ऐसी कोई पुष्टि अपेक्षित नहीं है, वहां विचारण करने वाले आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित और प्रमाणित, एक प्रति भारत में किसी मजिस्ट्रेट को भेजी जा सकेगी और वह मजिस्ट्रेट तब उस जुर्माने को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंधों के अनुसार ऐसे वसूल कराएगा मानो वह उस मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित जुर्माने का दंडादेश हो ।
141. आदेश या वारंट में अप्ररूपिता या गलती- जब कभी किसी व्यक्ति को , इस अधिनियम के अधीन कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है और वह उस दंडादेश को किसी ऐसे स्थान में या रीति से भोग रहा है , जिसमें वह इस अधिनियम के अनुसरण में किसी विधिपूर्ण आदेश या वारंट के अधीन परिरुद्ध किया जा सकता है तब ऐसे व्यक्ति का परिरोध केवल इस कारण अवैध नहीं समझा जाएगा कि उस आदेश , वारंट या अन्य दस्तावेज या उस प्राधिकार में या उसके संबंध में जिसके द्वारा या जिसके अनुसरण में वह व्यक्ति ऐसे स्थान में लाया गया था या परिरुद्ध है , कोई अप्ररूपिता या गलती है और ऐसे किसी आदेश , वारंट या दस्तावेज में , तद्नुसार संशोधन किया जा सकेगा ।
142. क्षमा और परिहार- जब किसी ऐसे व्यक्ति को , जो इस अधिनियम के अधीन है , बल न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है तब केन्द्रीय सरकार या महानिदेशक या ऐसे दंडादेश की दशा में , जिसे वह पुष्ट कर सकता था या जिसकी पुष्टि अपेक्षित नहीं थी , ऐसा आफिसर , जो उस उप - महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है , जिसके समादेश के अधीन वह व्यक्ति , सिद्धदोष ठहराए जाने के समय सेवारत था या विहित आफिसर , -
(क) या तो उन शर्तों के सहित या उनके बिना जिन्हें दंडादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करता है, उस व्यक्ति को क्षमा कर सकेगा या अधिनिर्णीत संपूर्ण दंड या उसके किसी भाग का परिहार कर सकेगा; या
(ख) अधिनिर्णीत दंड में कमी कर सकेगा; या
(ग) ऐसे दंड को इस अधिनियम में वर्णित किसी लघुतर दंड या दंडों में लघुकृत कर सकेगा; या
(घ) या तो उन शर्तों के सहित या उनके बिना जिन्हें दंडादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करता है, उस व्यक्ति को परोल पर निर्मुक्त कर सकेगा ।
143. सशर्त क्षमा, परोल पर निर्मुक्ति या परिहार का रद्दकरण-(1) यदि कोई शर्त, जिस पर किसी व्यक्ति को क्षमा या परोल पर निर्मुक्त किया गया है या जिस पर किसी दंड का परिहार किया गया है उस प्राधिकारी की राय में जिसने क्षमा, निर्मुक्ति या परिहार अनुदत्त किया था, पूरी नहीं की गई है तो ऐसा प्राधिकारी उस क्षमा, निर्मुक्ति या परिहार को रद्द कर सकेगा और तब न्यायालय का दंडादेश ऐसे क्रियान्वित किया जाएगा मानो ऐसी क्षमा, निर्मुक्ति या परिहार अनुदत्त नहीं किया गया हो ।
(2) वह व्यक्ति, जिसके कारावास का दंडादेश उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन कार्यान्वित किया जाता है, अपने ऐसे दंडादेश का केवल अनवसित भाग ही भोगेगा ।
144. कारावास के दंडादेश का निलंबन-(1) जहां किसी ऐसे व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के अधीन है, किसी बल न्यायालय द्वारा कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है, वहां केन्द्रीय सरकार, महानिदेशक या जनरल बल न्यायालय संयोजित करने के लिए सशक्त कोई आफिसर दंडादेश को निलंबित कर सकेगा, चाहे अपराधी को कारागार के या बल अभिरक्षा के सुपुर्द पहले ही कर दिया गया हो या नहीं ।
(2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर, ऐसे दंडादिष्ट अपराधी की दशा में निदेश दे सकेगा कि जब तक ऐसे प्राधिकारी या आफिसर के आदेश अभिप्राप्त न कर लिए जाएं तब तक अपराधी को कारागार के या बल अभिरक्षा के सुपुर्द नहीं किया जाएगा ।
(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग किसी ऐसे दंडादेश की दशा में किया जा सकेगा, जिसकी पुष्टि कर दी गई है या जो घटा दिया गया है या लघुकृत कर दिया गया है ।
145. आदेश के लंबित रहने तक दंडादेश का निलंबन-(1) जहां धारा 144 में निर्दिष्ट दंडादेश, समरी बल न्यायालय से भिन्न बल न्यायालय द्वारा अधिरोपित किया जाता है, वहां पुष्टिकर्ता आफिसर दंडादेश की पुष्टि करते समय निदेश दे सकेगा कि अपराधी को कारागार के या बल अभिरक्षा के सुपुर्द तब तक न किया जाए जब तक कि धारा 144 में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर के आदेश अभिप्राप्त न कर लिए जाएं ।
(2) जहां कारावास का दंडादेश किसी समरी बल न्यायालय द्वारा अधिरोपित किया जाता है, वहां विचारण करने वाला आफिसर उपधारा (1) में निर्दिष्ट निदेश दे सकेगा ।
146. दण्डादेश के निलंबन पर निर्मुक्ति-जहां कोई दंडादेश धारा 144 के अधीन निलंबित किया जाता है, वहां अपराधी को अभिरक्षा से तत्काल निर्मुक्त कर दिया जाएगा ।
147. दण्डादेश की अवधि की संगणना-वह अवधि, जिसके दौरान दंडादेश निलंबित है, उस दंडादेश की अवधि का भाग मानी जाएगी ।
148. दंडादेश के निलंबन के पश्चात् आदेश-धारा 144 में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर किसी भी समय, जब दंडादेश निलंबित है, आदेश कर सकेगा कि-
(क) अपराधी उस दंडादेश के अनवसित भाग को भोगने के लिए सुपुर्द किया जाए; या
(ख) दंडादेश का परिहार किया जाए ।
149. दण्डादेश के निलंबन के पश्चात् मामले पर पुनर्विचार-(1) जहां कोई दंडादेश निलंबित किया गया है, वहां धारा 144 में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी ऐसे प्राधिकारी या आफिसर द्वारा, जो अपर उप-महानिरीक्षक के रैंक से नीचे का नहीं है, मामले पर पुनर्विचार किसी भी समय किया जा सकेगा और चार मास से अनधिक के अंतरालों पर किया जाएगा ।
(2) जहां ऐसे प्राधिकृत आफिसर को ऐसे पुनर्विचार पर यह प्रतीत होता है कि अपराधी का आचरण उसको सिद्धदोष ठहराए जाने के समय से ही ऐसा रहा है तो दंडादेश का परिहार करना न्यायोचित होगा, वहां वह मामले को धारा 144 में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर को निर्देशित करेगा ।
150. निलंबन के पश्चात् नया दंडादेश-जहां किसी अपराधी को, उस समय के दौरान जब उसका दंडादेश इस अधिनियम के अधीन निलंबित है, किसी अन्य अपराध के लिए दंडादिष्ट किया जाता है वहां-
( क ) यदि अतिरिक्त दंडादेश भी इस अधिनियम के अधीन निलंबित किया जाता है तो , वे दोनों दंडादेश साथ - साथ भोगे जाएंगे ;
(ख) यदि अतिरिक्त दंडादेश, तीन मास या उससे अधिक की अवधि के लिए है और वह इस अधिनियम के अधीन निलंबित नहीं किया जाता है तो अपराधी पूर्व दंडादेश के अनवसित भाग के लिए भी कारागार के या बल की अभिरक्षा के सुपुर्द किया जाएगा, किन्तु दोनों दंडादेश साथ-साथ भोगे जाएंगे; और
(ग) यदि अतिरिक्त दंडादेश तीन मास से कम की अवधि के लिए है और वह इस अधिनियम के अधीन निलंबित नहीं किया जाता है तो अपराधी केवल उसी दंडादेश पर ऐसे सुपुर्द किया जाएगा और पूर्व दंडादेश, किसी ऐसे आदेश के अधीन रहते हुए, निलंबित बना रहेगा, जो धारा 148 या धारा 149 के अधीन पारित किया जाए ।
151. दंडादेश के निलंबन की शक्ति की परिधि-धारा 144 और धारा 148 द्वारा प्रदत्त शक्तियां, कमी करने, परिहार करने और लघुकरण की शक्ति के अतिरिक्त होंगी, न कि उसके अल्पीकरण में ।
152. दंडादेश के निलंबन और परिहार का पदच्युति पर प्रभाव-(1) जहां किसी अन्य दंडादेश के अतिरिक्त पदच्युति का दंड बल न्यायालय द्वारा अधिनिर्णीत किया जाता है और ऐसा अन्य दंडादेश , धारा 144 के अधीन निलंबित किया जाता है , वहां ऐसी पदच्युति तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि धारा 144 में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी या आफिसर द्वारा वैसा आदेश नहीं किया जाता है ।
(2) यदि ऐसे अन्य दंडादेश का धारा 148 के अधीन परिहार किया जाता है , तो पदच्युति के दंड का भी परिहार कर दिया जाएगा ।
अध्याय 11
प्रकीर्ण
153. बल के सदस्यों को प्रदत्त की जा सकने वाली शक्तियां और उन पर अधिरोपित किए जा सकने वाले कर्तव्य- (1) केन्द्रीय सरकार , राजपत्र में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगी कि ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं , बल का कोई सदस्य किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन ऐसी शक्तियों का प्रयोग या कर्तव्यों का निर्वहन कर सकेगा , जो उक्त आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं , तथा जो शक्तियां और कर्तव्य ऐसे हैं , जिनका उक्त प्रयोजनों के लिए प्रयोग या निर्वहन करने के लिए , केन्द्रीय सरकार की राय में , ऐसे केन्द्रीय अधिनियम द्वारा तत्समान या निम्नतर रैंक के आफिसर को सशक्त किया गया है ।
(2) केन्द्रीय सरकार राजपत्र में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा संबंधित राज्य सरकार की सहमति से ऐसी कोई शक्ति या कर्तव्य, जिनका प्रयोग या निर्वहन किसी पुलिस आफिसर द्वारा राज्य के किसी अधिनियम के अधीन किया जा सकता है, बल के किसी ऐसे सदस्य को, जो केन्द्रीय सरकार की राय में, तत्समान या उससे उच्चतर रैंक का है, प्रदत्त या उस पर अधिरोपित कर सकेगी ।
(3) इस धारा के अधीन निकाला गया प्रत्येक आदेश, निकाले जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस आदेश में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह आदेश नहीं निकाला जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु आदेश के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे़गा ।
154. बल के सदस्यों के कार्यों के लिए संरक्षण-(1) किसी सक्षम प्राधिकारी के वारंट या आदेश के अनुसरण में बल के किसी सदस्य द्वारा किए गए किसी कार्य के लिए, उनके विरुद्ध किसी वाद या कार्यवाही में उसके लिए यह अभिवचन करना विधिपूर्ण होगा कि उसने ऐसा कार्य ऐसे वारंट या आदेश के प्राधिकार के अधीन किया था ।
(2) ऐसा कोई अभिवचन उस कार्य या निदेश देने वाले वारन्ट या आदेश को पेश करके साबित किया जा सकेगा और यदि उसे इस प्रकार साबित कर दिया जाता है तो बल के सदस्य को, उसके द्वारा इस प्रकार किए गए कार्य से संबंधित दायित्व से उस प्राधिकारी की अधिकारिता में, जिसने ऐसा वारंट या आदेश जारी किया है, कोई त्रुटि होते हुए भी उन्मोचित कर दिया जाएगा ।
(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधिक कार्यवाही (चाहे सिविल हो या दांडिक), जो बल के किसी सदस्य के विरुद्ध इस अधिनियम या नियमों के किसी उपबंध द्वारा या उसके अनुसरण में प्रदत्त शक्तियों के अधीन की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए विधिपूर्वक लाई जाए, उस कार्य के, जिसकी शिकायत की गई है, किए जाने के पश्चात् तीन मास के भीतर प्रारंभ की जाएगी, अन्यथा नहीं और ऐसी कार्यवाही की और उसके हेतुक की लिखित सूचना प्रतिवादी को या उसके वरिष्ठ प्राधिकारी को ऐसी कार्यवाही के प्रारंभ के कम से कम एक मास पूर्व दी जाएगी ।
155. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्ः-
(क) धारा 4 के अधीन बल के गठन की रीति, बल के सदस्यों की भर्ती और सेवा की शर्तें;
(ख) धारा 5 के अधीन बल का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण;
(ग) धारा 6 के अधीन बल में अभ्यावेशित किए जाने वाले व्यक्ति, अभ्यावेशन की रीति और इसकी प्रक्रिया;
(घ) ऐसा प्राधिकारी, जिसे धारा 8 के अधीन त्यागपत्र प्रस्तुत किया जाना है और जिससे कर्तव्य से अलग होने की अनुज्ञा अभिप्राप्त की जानी है;
( ङ ) व्यक्तियों का धारा 10 और धारा 11 के अधीन पदच्युत किया जाना , हटाया जाना और रैंक में अवनत किया जाना ;
(च) वे प्रयोजन और अन्य विषय, जिनका धारा 13 के अधीन विहित किया जाना अपेक्षित है;
(छ) धारा 60 के अधीन अधिरोपित किए जाने वाले जुर्माने की रकम और उसका आपतन;
(ज) धारा 66 के अधीन वेतन और भत्तों से कटौती की रीति और विस्तार तथा उसके लिए प्राधिकार;
( झ ) धारा 70 के अधीन किसी अपराध का अन्वेषण करने की प्रक्रिया और व्यक्तियों की गिरफ्तारी की रीति और शर्तें ;
( ञ ) धारा 71 के अधीन बल न्यायालय के संयोजन में विलंब के संबंध में कमान आफिसर द्वारा रिपोर्ट करने की रीति ;
(ट) धारा 74 के अधीन जांच न्यायालय नियुक्त करने का प्राधिकार और रीति;
(ठ) धारा 76 के अधीन बल न्यायालयों के संयोजन की रीति;
(ड) वे व्यक्ति, जिनके द्वारा धारा 91 के अधीन किसी अभियुक्त की किसी विचारण में प्रतिरक्षा की जा सकेगी और ऐसे व्यक्तियों की हाजिरी;
(ढ) धारा 95 के अधीन जज अटर्नी जनरल, उप जज अटर्नी जनरल, अपर जज अटर्नी जनरल और जज अटर्नी की भर्ती और उनकी सेवा की शर्तें;
(ण) धारा 132 के अधीन बल न्यायालय की कार्यवाहियों को बातिल करने के लिए आफिसर; और
(त) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाना है या विहित किया जाए अथवा जिसके बारे में नियमों द्वारा उपबंध किया जाना है या किया जाए ।
(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा, यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
156. विद्यमान सशस्त्र सीमा बल के संबंध में उपबंध-(1) इस अधिनियम के प्रारंभ पर विद्यमान सशस्त्र सीमा बल को इस अधिनियम के अधीन गठित बल समझा जाएगा ।
(2) इस अधिनियम के प्रारंभ पर विद्यमान सशस्त्र सीमा बल के सदस्यों को इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, नियुक्त या अभ्यावेशित किया गया समझा जाएगा ।
(3) इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व उपधारा (1) में निर्दिष्ट सशस्त्र सीमा बल के गठन के संबंध में, यथास्थिति, उसमें नियुक्त या अभ्यावेशित किसी व्यक्ति के संबंध में की गई कोई बात या कार्रवाई विधि की दृष्टि में वैसे ही विधिमान्य और प्रभावी होगी मानो वह बात या कार्रवाई इस अधिनियम के अधीन की गई हो:
परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी व्यक्ति को किसी ऐसी बात के बारे में, जिसे इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व उसके द्वारा किया गया है या करने का लोप किया गया है, किसी अपराध के लिए दोषी नहीं बनाएगी ।